दुनियाभर में भारत के आध्‍यात्मिक ज्ञान के रूप में भागवद्गीता को मणि के रूप में जाना जाता है। गीता में 18 अध्‍याय हैं और इन 18 अध्‍यायों में 700 श्‍लोक हैं। गीता में द्वापर युग के दौरान भगवान कृष्‍ण द्वारा अपने मित्र अर्जुन को कहे गए श्‍लोकों को समाहित किया गया है। श्रीकृष्‍ण द्वारा अर्जुन से कथित गीता के सारयुक्‍त 700 श्‍लोक आत्‍म साक्षात्‍कार के विज्ञान के मार्गदर्शक का अचूक कार्य करते हैं।

मानव के स्‍वभाव, उसके परिवेश और अन्‍ततोगत्‍वा भगवान श्रीकृष्‍ण के साथ उसके संबंध को उद्घाटित करने में इसकी तुलना में अन्‍य कोई ग्रंथ नहीं है। भागवद् गीता को वेदों और उपनिषदों का सार कहा जाता है। यह सब समय के लिए सभी स्‍वभाव के लोगों के लिए सार्वभौमिक शास्‍त्र है। गीता स्‍पष्‍ट रूप से चेतना की प्रकृति, आत्‍मा और ब्रह्मांड बताते हैं।


जो व्‍यक्‍ति भागवद् गीता का पाठ करता है तो उसे पुण्‍य की प्राप्‍ति के साथ-साथ अनेक फायदे होते हैं। गीता में कुछ ऐसे अध्‍याय हैं जो जीवन में आ रही लगातार विपत्तियों से मनुष्‍य को छुटकारा दिलाते हैं और उसे विपरीत प‍रिस्थितियों से लड़ने का साहस देते हैं। इसमें ग्रहों के प्रभाव और उनसे होने वाले नुकसान से बचने और उनका लाभ उठाने के संबंध में यह सूत्र लाभकारी हैं।

भागवद् गीता के फायदे –

भागवद् गीता के पाठ से शनि पीड़ा भी दूर होती है।

अगर आपकी कुंडली में शनि अशुभ स्‍थान में है तो आपको इसके प्रथम अध्‍याय का पाठ करना चाहिए। इससे शनि की पीड़ा दूर होती है। वहीं अगर कुंडली में गुरु की दृष्टि शनि पर हो तो दूसरे अध्‍याय का पाठ करें। दसवें भाव में शनि, मंगल और गुरु का प्रभाव होने पर तीसरे अध्‍याय का पाठ करें और चतुर्थ अध्‍याय का पाठ कुंडली का नवां भाव तथा कारक ग्रह प्रभावित होने पर करें।

पंचम अध्‍याय भाव 9 और 10 के अंर्तपरिवर्तन में लाभ देते हैं। इसी प्रकार छठा अध्‍याय तात्‍कालिक रूप से आठवां भाव एवं गुरु व शनि का प्रभाव होने और शुक्र का इस भाव से संबंधित होने पर लाभकारी है।

आठवें भाव से पीडित और मोक्ष प्राप्‍ति की कामना रखने पर सप्‍तम अध्‍याय का पाठ करें। आठवां अध्‍याय कुंडली में कारक ग्रह और बारहवें भाव का संबंध होने पर लाभ देता है।

नौंवे अध्‍याय का पाठ लग्‍नेश, दशमेश और मूल स्‍वभाव राशि का संबंध होने पर करना चाहिए। दसवें अध्‍याय का पाठ कर्म की प्रधानता को बताता है। कुंडली में लग्‍नेश से 8 से 12 भाव तक सभी ग्रह होने पर ग्‍यारहवें अध्‍याय का पाठ करें। बारहवें अध्‍याय भाव 5 व 9 तथा चंद्रमा प्रभावित होने पर उपयोगी है। चंद्रमा तथा बारहवें भाव से संबंधित उपचार के निए तेरहवें अध्‍याय का पाठ करना चहिए।

आठवें भाव में किसी भी उच्‍च ग्रह की उपस्थिति में चौदहवां अध्‍याय लाभ देगा। पंद्रहवे अध्‍याय लग्‍न एवं पांचववे भाव के संबंध में और सोलहवां अध्‍याय मंगल और सूर्य की खराब स्थिति में लाभकारी रहता है।

ये है भागवद् गीता के फायदे – अगर आपके जीवन में किसी भी तरह की कोई समस्‍या आ रही है या आप आर्थिक कष्‍ट या ग्रहों की पीड़ा से परेशान हैं तो आपको भागवद् गीता के फायदे । जीवन की हर समस्‍या का निदान गीता में समाहित है।

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