इस जगह पर केवल सूअर का खून पीने से ही पूरी होती है शादी की रस्म
हमारे देश में जहाँ हर दो कदम पर संस्कृति बदलती है वहां के तौर तरीके सभी कुछ अलग होते है. हर क्षेत्र की अपनी अपनी रीतियाँ और रिवाज़ होते है. कभी कभी तो ऐसे ऐसे रिवाजों से शादी होती है कि सुनकर हंसी आती है तो कहीं ऐसे ऐसे रिवाज़ होते है जिन्हें सुनकर विश्वास ही नहीं होता है.
आज हम आपको मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके में रहने वाली एक जनजाति में विवाह के दौरान निभाई जाने वाली अनोखी रस्म के बारे में बताएँगे.
ये रस्म ऐसी है जिसे सुनकर कुछ लोग तो शादी करने का नाम भी नहीं लेंगे, गलती से किसी पक्के ब्राह्मण या पक्के मुसलमान को इस रस्म के बारे में बता दिया तो वो तो लाठी डंडा लेकर मारने को दौड़ा देगा.
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ हमारे देश के हृदयस्थल में स्थित है.भौगालिक स्थिति के हिसाब से ये क्षेत्र बहुत सी विविधताओं से भरा हुआ है.
भौगोलिक विविधताओं के साथ साथ यहाँ के रीति रिवाज भी विविध है. मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ में बहुत सी जनजातियाँ और आदिवासी जातियां भी रहती है. इनमें से कुछ जातियां तो ऐसी है कि वो आज भी उन्ही तौर तरीकों से रहती है जिस तरह से सैंकड़ों सालों पहले रहती थी.
ऐसी ही एक जनजाति है जिसका नाम है गौंड. गौंड जनजाति के लोग अधिकतर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के अंदरूनी क्षेत्रों में पाए जाते है. गौंड जाति के लोग आज भी बहुत पिछड़े हुए है. आज भी आधुनिकता इन्हें छु भी नहीं सकी है. इनके रीति रिवाज़ तौर तरीके सभी पहले जैसे ही है.
गौंड जाति के लोगों में विवाह के समय एक बहुत ही अनोखी परम्परा का निर्वाह आज भी किया जाता है. इस अनोखी रस्म के अनुसार दूल्हा और दुल्हन का विवाह तभी संपन्न माना जाता है जब दूल्हा एक जानवर को न सिर्फ मारे अपितु उसका ताज़ा गर्म खून भी पीये.
जानवर भी कोई ऐसा वैसा नहीं, सिर्फ सूअर. इस रस्म को निभाने के लिए दूल्हा पक्ष के लोग बारात के साथ एक जिंदा सूअर भी लाते है. जब विवाह की साड़ी रस्मे, फेरे इत्यादि पूरे हो जाते है तो दुल्हे को विवाह की आखिरी रस्म के रूप में साथ लाये हुए सूअर को मारना होता है और फिर उस सूअर के पैर से खून पीना होता है.
ये रस्म निभाना हर दुल्हे के लिए ज़रूरी होता है, इस रस्म को पूरा किये बिना विवाह को संपन्न नहीं माना जाता.