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गरुड़ पुराण हिंदू धर्म में एक विशेष महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है, जिसे मृतक की आत्मा को मुक्ति प्रदान करने वाला माना जाता है। इसलिए, किसी की मृत्यु के पश्चात उसके घर में गरुड़ पुराण का पाठ करने की परंपरा है। गरुड़ पुराण की उत्पत्ति के बारे में कथा है कि एक बार पक्षीराज गरुड़ ने भगवान विष्णु से मृत्यु के समय और उसके बाद जीवन की स्थिति और आगे की यात्रा के बारे में अनेक रहस्यपूर्ण प्रश्न पूछे थे।

भगवान विष्णु ने पक्षीराज गरुड़ की जिज्ञासा को शांत करते हुए उनके सभी प्रश्नों के विस्तार से उत्तर दिए थे। गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु के इन उत्तरों का विवरण है। गरुड़ के प्रश्नों के कारण ही इस पुराण का नाम गरुड़ पुराण रखा गया है।

मृत्यु के समय का अनुभव

गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के समय का अनुभव व्यक्ति के अच्छे या बुरे कर्मों के आधार पर होता है। बुरे कर्म करने वालों के लिए मौत डरावनी और दुखदाई होती है। जिन्होंने हमेशा अच्छे कर्म किए होते हैं, उनके लिए मौत शांति का अहसास देने वाली होती है।

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कहते हैं कि मृत्यु के समय प्राणी के सामने उसका पूरा जीवन घूमने लगता है। बचपन से लेकर अंतिम समय तक के पूरे जीवन की अच्छी और बुरी सब तरह की घटनाएं किसी फिल्म की तरह उसके सामने चलती रहती हैं। इन सब यादों के साथ प्राणी को बहुत कम दिखने लगता है। इतना ही उसे अपने आसपास बैठे हुए लोग भी दिखाई नहीं देते हैं।

बुरे कर्म करने वालों के साथ होते हैं ये अनुभव?

गरुड़ पुराण के अनुसार, जिन लोगों ने बुरे कर्म किए होते हैं, उनके सामने उनके बुरे कर्म दिखाई देते हैं तब वे उन कर्मों के लिए बेहद दुखी होते हैं। वे पश्चाताप करते हैं कि क्यों उन्होंने सही जीवन नहीं जिया। जो जीवन उनको अच्छे कर्म करने के लिए मिला था उसे उन्होंने बरबाद कर दिया। ऐसे में ये लोग मरना नहीं चाहते हैं, वे चाहते हैं कि उनको एक और मौका मिले जिसमें वे सही तरह से जी सकें, और जिनके साथ बुरा किया है उनसे दिल से माफी मांग सकें।

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अच्छे कर्म वालों के साथ होते हैं ये अनुभव?

गरुड़ पुराण के अनुसार, जिन लोगों ने जीवन में हमेशा अच्छे कर्म किए होते हैं, मृत्यु उनके लिए एक नया सफर जैसा होती है। वे बेहद शांति का अनुभव करते हैं। उनके अंदर किसी भी तरह का पछतावा नहीं होता। अंत समय में उनको सफेद रोशनी दिखाई देती है जो उन्हें असीम शांति प्रदान कर रही होती है। इसी शांति में वे शरीर का त्याग कर देते हैं।

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