दोस्तों, आपको बता दें कि प्रथम पूज्य गणेश ने चूहे को अपना वाहन चुना था। जहां गणेशजी बुद्धि के देवता हैं, वहीं चूहे को तर्क-वितर्क का प्रतीक माना गया है। गणेश पुराण में यह वर्णित है कि भगवान श्रीगणेश हर युग में अपना वाहन बदलते रहते हैं। बता दें कि सतयुग में गणपति का वाहन सिंह, त्रेता युग में मयूर, द्वापर युग में चूहा तथा कलियुग में उनका वाहन घोड़ा है।

भगवान श्रीगणेश ने चूहे को क्या बनाया अपना वाहन ?
हिंदू धर्मग्रंथों में इस बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। एक बार महर्षि पराशर अपने आश्रम में ध्यानस्थ थे, तभी वहां कई चूहे आकर उनका ध्यान भंग करने लगे तथा उन चूहों ने महर्षि के आश्रम को बर्बाद कर दिया। जब महर्षि का ध्यान भंग हो गया तो उन्होंने इस समस्या के समाधान के लिए भगवान श्रीगणेश का स्मरण किया।

इसके बाद महर्षि पराशर की इस समस्या से मुक्ति दिलाने के लिए गणेश जी ने चूहों पर अपना पाश ( रस्सी नुमा शस्त्र) फेंका। आश्रम में ज्यादा उत्पात मचा रहे एक चूहे को बांधकर पाश ने श्रीगणेश के सामने उपस्थित किया। वह चूहा भगवान गणपति के विशालकाय स्वरूप को देखकर उनकी स्तुति करने लगा।

इसके बाद भगवान श्रीगणेश ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम मेरी शरण में हो, इसलिए जो चाहे मांग लो। तब चूहे को अहंकार पैदा हो गया। उसने कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए अगर आपको कुछ चाहिए तो आप मुझसे कुछ मांग सकते हैं।

तब गणेश जी ने प्रसन्न होकर कहा कि-मूषक तुम मेरे वाहन बन जाओ। चूहे ने गणेश जी की बात स्वीकार कर ली। इस प्रकार जब श्रीगणेश उस चूहे पर बैठे तो वह उनका वजन नहीं सहन कर पाया। ऐसे में उस चूहे का घंमड चूर-चूर हो गया। चूहे ने भगवान श्रीगणेश से माफी मांगी तो उन्होंने चूहे के लिए अपना वजन कम कर लिया। तभी से गणेश जी का वाहन वही चूहा है।

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