बता दें कि कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ बुद्धत्व की खोज में जंगल-पहाड़ भटक रहे थे। अब उनकी हिम्मत टूटने लगी। एक बार उन्हें ऐसा लगा कि सत्य और ज्ञान की खोज में उनका गृह त्यागना व्यर्थ गया। कहा जाता है कि ऐसे कठिन वक्त में गिलहरी की एक सीख ने उन्हें सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बनने में मदद की। दरअसल हुआ यह कि सिद्धार्थ के मन में यह विचार उठने लगा कि क्यों न वापस राजमहल चला जाए। अंत में वे कपिलवस्तु की ओर लौट पड़े। चलते-चलते राह में उन्हें बड़े जोर की प्यास लगी। सामने ही एक झील थी। वे उस झील के किनारे गए, तभी उनकी दृष्टि एक गिलहरी पर पड़ी।

वह गिलहरी बार-बार पानी के पास जाती, अपनी पूंछ उसमें डुबोती और उसे निकाल कर रेत पर झटक देती। उसकी इस कोशिश पर सिद्धार्थ सोच में पड़ गए कि यह गिलहरी क्या कर रही है? कहीं ऐसा तो नहीं कि वह झील सुखाने का प्रयास कर रही है।

तभी उन्हें लगा कि गिलहरी उनसे कुछ कहना चाह रही है। गिलहरी उनसे कहना चाहती है कि मन में जिस कार्य को करने का एक बार निश्चय कर लिया जाए, तो उस पर अटल रहने से वह हो ही जाता है। बस हमें अपना काम करते रहना चाहिए। तभी सिद्धार्थ की तंद्रा भंग हो गई और उनके मन में व्याप्त निर्बलता दूर हुई। सिद्धार्थ वापस लौटे और फिर तपस्या में लीन हो गए। आखिरकार निरंतर प्रयास से सिद्धार्थ ने बुद्धत्व को प्राप्त ही कर लिया।

महात्मा बुद्ध से दो बातें सीखी जा सकती हैं। एक तो यह कि असफलता मिले या सफलता, हमें निरंतर प्रयास में लगे रहना चाहिए। दूसरा यह कि मनुष्य जीवन भर सीख ग्रहण करता रह सकता है। चाहे महान लोगों का जीवन चरित हो या छोटे-से जीव का सामान्य सा कार्य, हम किसी से भी सीख ग्रहण कर सकते हैं। करना सिर्फ इतना होगा कि हमें अपने कर्म पथ पर निरंतर चलते रहना होगा।

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