आपको जानकारी के लिए बता दें कि बुधवार को 6 महीने के इंतजार के बाद भोले बाबा की जयकारों की गूंज के साथ भक्तों के लिए ब्रह्म मुहूर्त में केदारनाथ धाम के कपाट खुल गए हैं। केदारनाथ धाम के कपाट हर साल अक्टूबर-नवंबर में 6 महीने के लिए बंद कर दिए जाते हैं, जो अप्रैल-मई में फिर से खुलते हैं। इस बार भारी हिमपात से यात्रा मार्ग पर काफी बर्फ है।

महाभारत में भी केदारनाथ का वर्णन है। महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के यहां पूजा करने की बातें सामने आती हैं। माना जाता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा मौजूदा मंदिर बनवाया गया था। बद्रीनाथ मंदिर के बारे में स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में भी वर्णन मिलता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं तब मंदिर में पूजा की जिम्मेदारी देवताओं की होती है। लोक मान्यता के अनुसार, जब केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं, तब बंद कपाट के अंदर से घंटियों की आवाजें सुनाई देती हैं।

ऐसा कहा जाता है कि शीतकाल में जब मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं तब अखंड दीप जलाकर मंदिर में रख दिया जाता है, और ग्रीष्म ऋतु आने पर मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तब वहीं अखंड ज्योति जलती हुई मिलती है। मान्यता है कि इस दिव्य ज्योति का दर्शन बहुत ही पुण्यदायी है। इस दिव्य ज्योति का दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं।

केदारनाथ धाम के पीछे स्थित कुंड में केदारनाथ के अभिषेक का जल रहता है। कहा जाता है कि यह जल अमृत समान है। इसीलिए यहां आने वाले श्रद्धालु इस जल को जरूर पीते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस जल से लोगों के त्वचा संबंधी बीमारियां दूर हो जाती हैं।

केदारनाथ से 8 किमी की दूरी पर स्थित वासुकी ताल के बारे में स्कंद पुराण में वर्णन मिलता है। स्कंद पुराण के मुताबिक श्रावण मास की पूर्णमासी के दिन इस ताल में मणियुक्त वासुकी नाग के दर्शन होते हैं। इसके अलावा भगवान शिव को चढ़ाया जाने वाला ब्रह्मकमल भी यहीं खिलता है।

Related News