सोनी लिव के लेटेस्ट प्रेजेंटेशन 'तनाव' में कश्मीर के उसी अंदरुनी मसले को दिखाया गया है। फौदा में जहां इजरायल और फिलिस्तीन देशों के बीच के मतभेद पर कहानी को गढ़ा गया था, वहीं 'तनाव' में कश्मीर के अंदरुनी मुद्दों को बखूबी दिखाया गया है। इसमें अरबाज खान, मानव विज समेत अन्य एक्टर्स के अभिनय से सजे इस शो में कश्मीर की कथित आजादी की बात करने वाले उग्रवादियों, अलगाववादी नेताओं और सेना के बीच के मतभेद को दिखाया गया है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर के हालात बदल चुके हैं। हालांकि तनाव की कहानी अनुच्छेद 370 हटने से पहले के दौर में सेट की गई है।

क्या है कहानी
कहानी शुरू होती है कश्मीर के एक प्रोफेसर के साथ, जिसे स्पेशल टास्क ग्रुप (एसटीजी) उठाकर ले जाते हैं। एसटीजी के सीनियर मलिक (रजत कपूर) उससे एक ब्लास्ट के बारे में जानकारी चाहता है। प्रोफेसर बताता है कि उग्रवादी पैंथर उर्फ उमर रियाज (सुमित कौल) जिंदा है। कबीर फारुकी (मानव विज) जिसने एक ऑपरेशन के दौरान उमर को मार गिराया था, वह अब एसटीजी से लंबी छुट्टी लेकर सेब का बिजनेस करता है। उसके परिवार में उसकी पत्नी नुसरत फारुकी (सुखमनी सदाना) और दो बच्चे हैं।


कबीर का सीनियर विक्रांत राठौर (अरबाज खान) उसे बताता है कि उमर जिंदा है और वह कुछ बड़ा करने वाला है। उसे फिर से एसटीजी ज्वाइन करना चाहिए, क्योंकि उमर के दिमाग को वह बेहतर समझता है। पत्नी के मना करने पर भी कबीर खुद को रोक नहीं पाता है। वह अपनी एसटीजी टीम के पास लौट जाता है। उमर अपने भाई के शादी में आने वाला है। कबीर अपनी टीम के साथ वहां घुसने की योजना बनाता है। वह शादी में घुस भी जाता है, लेकिन उसके आक्रामक बर्ताव की वजह से मिशन फेल हो जाता है और गलती से उमर का छोटा भाई मारा जाता है। इस गोलीबारी में उमर भी घायल होता है। अब उमर के लिए यह दुश्मनी निजी हो गई है। वहीं कबीर किसी भी हाल में उमर को पकड़ना चाहता है।


उग्रवादियों के पारिवारिक रिश्तों को भी दिखाती है कहानी
सिर्फ कश्मीर के अंदरुनी मामलों पर ही नहीं, बल्कि आर्मी और उग्रवादियों के पारिवारिक रिश्तों का ताना-बाना भी कहानी में बुना गया है, जो इसे दूसरी कश्मीर के मुद्दों पर बनने वाली कहानियों से अलग बनाता है। फौदा की कहानी का अडाप्टेशन और स्क्रीनप्ले करने वाले ईशान त्रिवेदी और सुधीर मिश्रा ने चतुराई दिखाते हुए देश में किसी और तनाव को छुए बिना कश्मीर के बैकड्रॉप पर तनाव की कहानी को लिखा है। यही एक वजह है कि यह फौदा सीरीज के काफी करीब लगती है। उमर से बेहद करीब आकर भी कबीर उसे पकड़ने में कई बार नाकामयाब होता रहता है, यह रोमांच कहानी के हर एपिसोड के साथ बढ़ता है। मुद्दे की गंभीरता के साथ सुधीर मिश्रा अपने निर्देशन में गढ़े हर एक फ्रेम में संवेदनशील दिखाते हैं।

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