इमरजेंसी की वजह से 'शोले' का क्लाइमेक्स बदला, 43 साल बाद ऐसे खुला राज
इंटरनेट डेस्क। हिंदी सिनेमा की सबसे कबस्टर फिल्म 'शोले' आज भी दर्शकों के दिलो पर राज करती है। इस फिल्म 43 साल हो चुके है। लेकिन आज भी लोगों के बीच इस फिल्म का क्रेज वैसा का वैसा ही है। इस फिल्म को लेकर ऐसा राज़ खुला है जिसके बारे में जानकर हर कोई हैरान रह गया। इस फिल्म की कहानी जितनी जबरदस्त है उतना ही इसका क्लाइमेक्स। लेकिन क्या आपको पता है इस फिल्म का क्लाइमेक्स जो असल में दिखाया गया था वो नहीं था?जय और वीरू की जोड़ी से लेकर ठाकुर और गब्बर के डायलॉग आज भी लोगो की जबान पर आये दिन आते रहते है। इस फिल्म से जुड़ा हाल ही में एक राज़ खुला है। फिल्म के आखिरी सीन में दिखाया गया है कि ठाकुर गब्बर को मारने की कोशिश करता है लेकिन पुलिस आकर उन्हें ऐसा करने से रोक देती है। वहीं अब ऐसी खबर आई है कि फिल्म का आखिरी सीन यह नहीं था, इसे फिल्म रिलीज होने के कुछ दिन पहले बदला गया था। असल में 'शोले' फिल्म के आखिरी सीन को रमेश सिप्पी ने पूरी तरह से अलग शूट किया था।खबरों के अनुसार, फिल्म के अंतिम सीन में दिखाया जाना था कि ठाकुर गब्बर को पैरों से मारता हुआ उसी जगह पर ले जाता है जहां पर गब्बर ने ठाकुर के हाथ काट दिए होते हैं। गब्बर को मारने के बाद ठाकुर जमीन पर गिर जाता है जिसके बाद वीरू ठाकुर को शॉल उढ़ा देता है। जिसके बाद ठाकुर और वीरू एक दूसरे को गले लगा लेते हैं।इस पूरे सीन को शूट करने के बाद रमेश सिप्पी को अलग तरह से आखिरी सीन शूट करना पड़ा था जिसकी वजह सेंसर बोर्ड का फैसला था। जिस समय यह फिल्म रिलीज हुई थी उस समय देश में इमरजेंसी लगी हुई थी। ऐसे में सेंसरबोर्ड यह नहीं चाहता था कि फिल्म में दिखाया जाए कि पुलिस का पूर्व अफसर किसी अपराधी को खुद सजा दे। बोर्ड को ऐसा लगा था कि फिल्म में ऐसा दिखाए जाने से माहौल खराब हो सकता है जिसकी वजह से रमेश सिप्पी ने फिल्म के अंतिम सीन को दोबारा शूट किया। फिर इस फिल्म को रिलीज़ किया। जो आज भी लोगो के दिलो पर राज़ करती है।