पुलवामा में 14 फरवरी को सीआरपीएफ के काफिल पर हुए आतंकी हमले के बाद पूरे देश में पाकिस्तान के खिलाफ आक्रोश व्याप्त है। देश की सभी राजनीतिक पार्टियां एक स्वर में पाकिस्तान को सबक सिखाने का संकल्प लेते दिख रही हैं।

सत्ताधारी राजनेताओं के बयान आज भी ठीक उसी तरह से देखने को मिल रहे हैं, जैसे पहले के आतंकी हमलों के बाद दिए जाते रहे हैं। राजनेता एक-एक बूंद का हिसाब चुकता करने की बात कर रहे हैं। वहीं विपक्षी नेता भी देश की भावनाओं को देखते हुए राजनीतिक एकजुटता दिखाते नजर आ रहे हैं।

सर्वदलीय बैठक में सभी राजनीतिक दलों ने इस बात पर सहमति जताई है। लेकिन मुश्किल सवाल यह है कि पुलवामा आतंकी हमला उस वक्त हुआ है, जब लोकसभा चुनाव होने में महज 2 महीने शेष रह गए हैं।

आपको याद दिला दें कि 18 सितम्बर 2016 को उड़ी आतंकी हमले के 11 दिन बाद ही सेना के जवानों ने नियंत्रण रेखा के भीतर घुसकर पाकिस्तानी आतंकी शिविरों को तबाह किया था। इसके बाद मोदी सरकार ने यह दावा किया कि उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए देश से किया यह वादा पूरा किया कि पाकिस्तान को सबक सिखाएंगे।

लेकिन पुलवामा हमले के बाद जिस तरह से जैश-ए-मोहम्मद ने इसकी जिम्मेदारी ली है, कुछ भी ठोस सबूत हासिल करने की गुंजाइश नहीं बची है। जैश-ए-मोहम्मद चीफ मसूद अज़हर ने एक प्रकार से भारत को यह चेतावनी दी है कि उसके आतंकी भारत के भीतर घुसकर अपनी कार्रवाई को अंजाम दे सकते हैं।

ऐसे में देशभर में मसूद अजहर के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। महज निंदा करने और पाकिस्तान को धमकियां देने से आगे भारत सरकार कौन सी कड़ी कार्रवाई करती है, इस पर देश-विदेश की सियासी शक्तियों की नजर होगी।

चूंकि लोकसभा चुनाव नजदीक आ चुके हैंं। पुलवामा हमले के बाद मोदी सरकार ने जिस प्रकार से पाकिस्तान से बदला लेने का संकल्प लिया है, उसे राजनीतिक फ़ायदा उठाने के नज़रिये से भी देखा जा सकता है। अब विपक्षी दलों को भी इस बात की चिंता होने लगी है कि कहीं पाकिस्तान विरोधी भावनाओं का फायदा भाजपा को न मिल जाए।

लेकिन असली सवाल यह उठता है कि मोदी सरकार क्या कदम उठा सकती है,जिससे देश के मतदाताओं को लगे कि भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखा दिया। अगर मोदी सरकार एक बार फिर से पाकिस्तान के विरूद्ध सैन्य कार्रवाई करने में कामयाब हो जाती है, तब उसके इस कदम से आगामी चुनावों में देश की राजनीति तय हो सकती है।

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