जो छात्र अभी भी स्कूल में पढ़ रहे है और भविष्य में डॉक्टर बनना चाहते है, उनके लिए आने वाले समय में केवल एक कुशल डॉक्टर बनना ही पर्याप्त नहीं होगा। अब उन्हें डॉक्टर के रूप में काम करने के लिए महत्वपूर्ण संचार कौशल हासिल करना होगा। इसके लिए 2019-20 का एकेडमिक सत्र शुरू करने के पहले सिलेबस के बड़ा बदलाव किया जा रहा है।

बता दें कि भारत में 21 साल के लंबे समय के बाद ग्रेजुएशन सिलेबस को हाल ही में देश की मेडिकल काउंसिल द्वारा अंतिम रूप दिया गया है। '"इंडियन मेडिकल ग्रेजुएट के लिए योग्यता आधारित यूजी पाठ्यक्रम' शीर्षक वाले 1997 के सिलेबस में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किये गए है जो चिकित्सा नैतिकता, डॉक्टर-रोगी के बीच बेहतर संबंध और परिणाम आधारित शिक्षा पर जोर देता है।

जानकारी के मुताबिक नए एमबीबीएस सिलेबस में एटिट्यूड, एथिक्स एंड कम्युनिकेशन (एईटीकॉम) नाम का एक कोर्स है जो कि सभी वर्षों में चलेगा। छात्रों में इस बात का परिक्षण किया जाएगा कि वे रोगियों के साथ कैसे बात करते है, वे अंग दान या अन्य चुनौतीपूर्ण प्रक्रियाओं के लिए लोगों को कैसे सलाह देते है, वे कितनी संवेदनशीलता से रोगियों की देखभाल करते है। इन सभी चीज़ों को उनकी योग्यताओं और कौशल में अंतर्गत गिना जाएगा।

इस नए कार्यक्रम के तहत अब छात्रों को दूसरे वर्ष के बजाय अपने पहले वर्ष में ही क्लीनिकल एक्सपोजर प्राप्त होगा। इस नए सिलेबस में एक नई चीज़ जोड़ी गई है वो यह है कि अब छात्र अपनी पसंद के विषयों को चुन सकते है और उन्हें उन चीज़ों को सीखने के लिए पर्याप्त समय दिया जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि कार्यक्रम में बदलाव से भविष्य में भारत के डॉक्टरों में बहुत बदलाव आएगा।

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