आयोध्या को भगवान राम के नाम से जाना जाता है। ऐसे में यहां भक्ति की बात होनी चाहिए, पर अब भक्ति से ज्यादा अयोध्या विवाद के कारण मशहूर है। 23 दिसंबर, 1949. अयोध्या में काफी हलचल थी और मंदिर मठों आदि में भी काफी हलचल थी और इसकी वजह ये थी कि लोग कह रहे थे कि अयोध्या में भगवान राम का अवतार हुआ है लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि अब वहां एक मस्जिद है। हजारों की संख्या में लोग वहां पहुंच गए और इसने एक विवाद का रूप ले लिया।

जब तक मूर्ति राम चबूतरे पर थी तो उसका पूजा पाठ होता था और प्रसाद भी बनता था लेकिन अब वो मूर्ति राम चबूतरे से उठकर गर्भगृह तक पहुंच गई थी। लेकिन मूर्ति रामचबूतरे से गर्भगृह तक पहुंची कैसे इस बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं थी।

कृष्ण झा और धीरेंद्र कुमार झा की लिखी किताब अयोध्या, द डार्क नाइट के मुताबिक किसी ने उनकी मूर्ति वहां रखी थी। इस किताब में ये भी लिखा हुआ है कि हनुमान गढ़ी के महंत अभिराम दास ने इस मूर्ति को वहां रखा था।

उन्होंने वृंदावन के एक दूसरे साधु के साथ मिल कर इस काम को अंजाम दिया। उन्होंने ये काम रात के अँधेरे में किया। लेकिन उन्होंने ये काम कैसे किया इस बारे में सटीक तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। बाबा अभिराम दास और परमहंस का इसमें हाथ था।

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हालांकि 22 दिसंबर, 1991 को न्यूयार्क टाइम्स को दिए इंटरव्यू में परमहंस ने दावा किया था कि मस्जिद में मूर्ति उन्होंने ने ही रखी थी।
22 दिसंबर की रात करीब 11 बजे अभिराम दास हनुमान गढ़ी में आये और सभी को सोते हुए गहरी नींद से जगाया। अपने परिवार वालों को उन्होंने कहा था कि ”मैं जा रहा हूँ और हो सकता है कि मैं न लौटूं। अगर मुझे कुछ होता है और अगर मैं सुबह वापस नहीं आ पाता हूं तो युगल मेरा उत्तराधिकारी होगा।”

अयोध्या थाने के एसएचओ रामदेव दुबे जो वहां रोजाना पहरा देने आते थे उनके मुताबिक 2 दिसंबर की रात 50-60 लोगों ने राम चबूतरे पर बने मंदिर का ताला तोड़ दिया। उन्होंने मस्जिद की दिवार फांदी और मंदिर के अंदर पहुंच गए और वहां भगवान राम की मूर्ति रख दी। वहां उन्होंने जय सिया राम भी लिख दिया।

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अयोध्या में कोई बवाल न हो, इसके लिए केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों ने तय किया कि अयोध्या में पहले वाली स्थिति बहाल की जाए। राज्य के मुख्य सचिव भगवान सहाय ने फैजाबाद के डीएम केके नायर को आदेश दिया कि रामलला की मूर्ति को मस्जिद से निकालकर राम चबूतरे पर फिर से रख दिया जाए। लेकिन डीएम केके नायर ने इस फैसले को नहीं माना इस से वहां के हालात खराब हो सकते हैं। पुजारी भी नहीं चाहते थे कि मूर्ति फिर से वहां पहुंचे।

इसके बाद ये मामला कोर्ट तक पहुंच गया और आदेश दिया गया कि इस मूर्ति को जाली से कवर कर दिया जाए और मूर्ति को भोग लगाने वाले पुजारियों की संख्या तीन से घटाकर एक कर दी जाए।

तब से लेकर अब तक करीब 70 साल बीत गए हैं. जहां मस्जिद थी, वहां पर अब खंडहर हैं। जिला अदालत से होते हुए ये मामला हाई कोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है और इसका अब तक कोई फैसला नहीं आया है।

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