इस स्टोरी में हम आपसे भारत के एक ऐसे प्रख्यात नेता के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं, जिसके लिए कवि रामधारी सिंह दिनकर ने कुछ इस तरह से पंक्तियां लिखी हैं। हम आपसे स्वाधीनता संग्राम सेनानी और प्रसिद्ध समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से जुड़ी एक रोचक घटना का वर्णन करने जा रहे हैं।

आजादी के दिनों में लोकनायक के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण 20 वर्ष की अवस्था में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए अमेरिका चले गए थे। उन्होंने 1922 से लेकर 1929 के बीच अमेरिका में ही समाजशास्त्र का अध्ययन किया। अपनी महंगी पढ़ाई का खर्च पूरा करने के लिए जयप्रकाश नारायण ने अमेरिका के खेतों, कंपनियों तथा रेस्टोरेंट तक में काम किया।

राजधानी और तेजस दोनों ट्रेनें खड़ी हो एक साथ, तो पहले किसे जाने देगा रेलवे, जान लें

अमेरिका से बीए तथा समाजशास्त्र में एमए करने के बाद पीएचडी की तैयारी में जुटे हुए थे, तभी मां की बीमारी की खबर सुनकर वर्ष 1929 में स्वदेश लौट आए। उन दिनों भारत में स्वतंत्रता संग्राम तेजी पर था। जयप्रकाश का संपर्क शीघ्र ही महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू से हो गया और उनका भी नाम कांग्रेस के बड़े नेताओं में शामिल हो गया। उन्होंने 1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इतना ही नहीं 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय देश के सभी नेता जेलों में कैद कर लिए गए, तब दीवाली के दिन हजारीबाग जेल की दीवार फांदकर जयप्रकाश नारायण भूमिगत हो गए और अगस्त क्रांति को एक नई दिशा दी।

हांलाकि आजादी के बाद एक बार फिर से इस प्रख्यात समाजवादी नेता ने देश के युवाओं में सच्चे लोकतंत्र का सपना जगाने का काम किया। आपातकाल के दौरान भारत के कोने-कोने में संपूर्ण क्रांति की अलख जगाने वाले जयप्रकाश नारायण ने सभी विपक्षी नेताओं को एकजुट कर 1977 में इंदिरा गांधी की सरकार को करारी शिकस्त दी थी।

BCCI के अध्यक्ष बनते ही सौरव गांगुली को होगा करोड़ों का नुकसान

बता दें कि 1977 में जब देश में जनता पार्टी की सरकार बनी तो 24 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में विजय रैली का आयोजन किया गया था, लेकिन लोकनायक जयप्रकाश खुद उस विजय रैली में शामिल नहीं हुए थे।

दरअसल विजय रैली के दिन जयप्रकाश नारायण गांधी शांति प्रतिष्ठान से निकलकर सफदरजंग रोड की एक नंबर कोठी में गए, जहां चुनाव हारने के बाद इंदिरा गांधी बैठी हुई थीं। जेपी से मिलते ही इंदिरा गांधी रोने लगी थीं, लेकिन इससे हैरानी वाली बात तो यह थी कि अपनी इस पराजित पुत्री के सामने विजेता पिता भी रो रहा था।

Related News