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आज लैपटॉप और कंप्यूटर हमारी आवश्यकता बन चुके हैं। लेकिन जब बात पूरे विश्व की आती हैं तो हमें आवश्यकता होती हैं सुपर कंप्यूटर की। करोड़ों लोगों की जरुरत को पूरा करने के लिए हमें सुपर कंप्यूटर की आवश्यकता होती हैं। सुपर कंप्यूटर की स्पीड ही उसकी पहचान हैं। भारत ने भी अपना सुपर कंप्यूटर बनाया जो विश्व स्तर पर काफी लोकप्रिय हुआ। भारत के सबसे पहले सुपर कंप्यूटर का नाम 'परम' था।

परम को बनाने से पहले भारत अमेरिका से उसका सुपर कंप्यूटर खरीदना चाहता था, जिसका नाम 'क्रे' था। अमेरिकी सुपर कंप्यूटर 'क्रे' को भारत ने साल 1980 के आसपास खरीदने की इच्छा जाहिर की। लेकिन अमेरिका भारत को इस टेक्नोलॉजी को बेचना नहीं चाहता था। इसके पीछे वजह यह भी रही कि, अमेरिका नहीं चाहता था कि, भारत डिजिटल टेक्नोलॉजी में उसकी बराबरी करें। जिसके बाद भारत ने अपना सुपर कंप्यूटर बनाने की ठान ली।

साल 1988 में डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स और इसके डायरेक्टर डॉ विजय भटकर की अगुवाई में सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग यानी सी-डेक की स्थापना पुणे में की गयी। स्वदेशी सुपर कंप्यूटर बनाने के लिए सीडैक को 3 साल का वक्त दिया गया। इसके साथ ही कंप्यूटर डेवलप करने के लिए 30 करोड रुपए की शुरुआती फंडिंग भी दी गई। इसके बाद सीडैक के वैज्ञानिक स्वदेशी सुपर कंप्यूटर बनाने के लिए जी-जान से लग गए।

आखिरकार साल 1990 में भारत ने अपना सुपर कंप्यूटर तैयार कर लिया। शुरूआती तौर पर साल 90 में सुपर कंप्यूटर का प्रोटोटाइप मॉडल बना लिया गया। इसके बाद इसी साल ज्‍यूरिख में हुए सुपर कंप्यूटिंग शो में यह कंप्‍यूटर एक बेंच मार्क बनकर सामने आया। भारत का पहला सुपर कंप्यूटर 'परम 8000' ने सुपर कंप्यूटिंग शो में दुनिया के लगभग सभी देशों के कंप्यूटर्स को पीछे छोड़, अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर काबिज हो गया।

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