नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) द्वारा अपने संविधान में किए गए संशोधन को हरी झंडी देते हुए अध्यक्ष सौरव गांगुली और सचिव जय शाह को बड़ी राहत दी है। अब उनके अगले कार्यकाल का रास्ता साफ हो गया है। बीसीसीआई ने अधिकारियों के कार्यकाल और कूलिंग पीरियड में ढील देने के लिए अपने संविधान में संशोधन किया था।

शीर्ष अदालत के फैसले के बाद, पदाधिकारियों का अब बीसीसीआई और किसी भी राज्य संघ में एक बार में अधिकतम 12 साल का कार्यकाल हो सकता है। इसके साथ ही अगर वह लगातार दो बार यानी 6 साल बीसीसीआई में बने रहते हैं तो तीन साल का कूलिंग ऑफ पीरियड होगा। बीसीसीआई बनाम बिहार क्रिकेट संघ के मामले में कोर्ट ने यह भी कहा कि बोर्ड के संविधान में कोई भी संशोधन कोर्ट की अनुमति के बिना प्रभावी नहीं होगा. आपको बता दें कि सौरव गांगुली के अध्यक्ष बने रहने के लिए बीसीसीआई के संविधान में बदलाव किया गया था। इसके बाद करीब तीन साल पहले यह याचिका दायर की गई थी।

नया बीसीसीआई संविधान 2018 में लागू हुआ। इसमें एक नियम था कि राज्य या बीसीसीआई स्तर पर अपने दो कार्यकाल पूरे करने वाले किसी भी अधिकारी को तीन साल की कूलिंग-ऑफ अवधि पूरी करनी होगी। इस नियम के तहत छह साल पूरे होने पर वह व्यक्ति स्वतः ही चुनावी दौड़ से पूरी तरह बाहर हो जाएगा। बीसीसीआई ने कोर्ट में याचिका दायर कर इन नियमों में बदलाव और कूलिंग ऑफ पीरियड को पूरी तरह से खत्म करने की मांग की थी। इसने अदालत से अपने संविधान में संशोधन करने और सचिव को अधिक अधिकार देने का भी अनुरोध किया ताकि बोर्ड को बार-बार अदालत में न आना पड़े।

दरअसल, बीसीसीआई ने सुप्रीम कोर्ट में यह भी कहा कि उसके अधिकारियों को लगातार दो कार्यकाल देने की अनुमति दी जानी चाहिए। बीसीसीआई ने तर्क दिया है कि राज्य क्रिकेट संघों का भी कूलिंग ऑफ पीरियड तीन साल का होता है। इससे बीसीसीआई में उनके प्रमोशन में दिक्कत आ रही है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि एक टर्म के बजाय दो टर्म के बाद कूलिंग ऑफ पीरियड दिया जा सकता है.

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