टोक्यो ओलंपिक जिसे खेलों का महाकुंभ कहा जाता है जल्द ही शुरू होने वाला है। इसमें कई तरह के गेम्स होते हैं जिनमे घुड़सवारी भी शामिल है। ये काफी पुराना खेल है जिसे 1990 में पहली बार ओलंपिक में शामिल किया गया था। पहले केवल ए लेवल खिलाड़ी इसमें हिस्सा ले सकते थे लेकिन बाद में सभी को इजाजत दे दी गई। भारत की ओर से घुड़सवारी में अब तक ओलंपिक में 2 खिलाड़ी हिस्सा ले चुके हैं और इस बार 20 साल के फवाद मिर्जा हिस्सा लेने वाले तीसरे घुड़सवार होंगे।

घुड़सवारी का खेल काफी रोमांचक होता है। इसमें खिलाड़ी के साथ घोड़ों का भी विशेष योगदान होता है। दोनों के बीच तालमेल होना बेहद जरूरी है।खिलाड़ी तो आसानी से ओलिंपिक का सफर तय कर लेते हैं, लेकिन इन घोड़ों के लिए यह इतना आसान नहीं होता।

हर घोड़े का होता है पासपोर्ट
इंसानों की तरह ओलिंपिक और अन्य बड़े खेलों में हिस्सा लेने वाले घोड़ों की अलग पहचान होती है। एयरपोर्ट पर उन्हें अपना पासपोर्ट दिखाना होता है और बोर्डिंग पास मिलने पर ही वह सफर कर पाते हैं। घोड़ों के बोर्डिंग के अलावा सारे कागज़ की भी जांच की जाती है। इसके बाद उन्हें फ्लाइट के समय से घंटो पहले वहां पहुंचना होता है। फिर क्वालिफाइड डॉक्टर उनका चेकअप भी करते हैं। इसके बाद उन्हें बोर्डिंग गेट पर ले जाया जाता है और वहीं से वह फ्लाइट पर जाते हैं। घोड़ों को फ्लाइट में उनके स्टाल में रखा जाता है।

फ्लाइट में रखा जाता है खास ख्याल
घोड़े आम फ्लाइट में सफर नहीं करते, इनके लिए खास फ्लाइट होती है और एयरलाइन में ऐसी कुछ ही फ्लाइट्स है। ये जानवरों को लंबे सफर में ले जाने के लिए तैयार की जाती है। एमिरेट्स एयरलाइन में ऐसी ही फ्लाइट घोड़ों के लिए बनाई गई है जिसे स्काई कार्गो बोइंग 777 फ्राइट प्लेन कहा जाता है।

घोड़ों के लिए इसमें खास स्टॉल बने होते हैं जिनमे उन्हें खाना और पानी दिया जा सके। पायलट्स को भी लैंडिंग और टेक ऑफ के कारण ख्याल रखना होता है। फ्लाइट में खास डॉक्टर होता हैं और साथ ही केयर टेकर भी होते हैं जो घोडों का ख्याल रखते हैं।

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