कुश्ती के अखाड़े में मौजूद एक पहलवान के लिए दर्शक तालियां बजाते हैं, उनका उत्साहवर्धन करते हैं। लेकिन लोगों से खचाखच भरे स्टेडियम के बीच में खड़ा यह ताकतवर पहलवार न ही सुन सकता है और न कुछ बोल सकता है।
जी हां, हरियाणा के झज्जर जिले में मौजूद ससरोली गांव से ताल्लुक रखने वाले विरेंदर सिंह उपनाम गूंगा पहलवान नाम से जाने जाते हैं। इस पहलवान ने अपना नाम विश्व के कुश्ती चैंपियंस की फ़ेहरिस्त में स्वर्ण अक्षरों से लिख दिया है।

बता दें कि विरेंद्र सिंह ने बचपन में ही अपने सुनने ही क्षमता खो दी थी, इस वजह से वे कभी बोल नहीें पाए। विरेंद्र सिंह के पिता अजीत सिंह सीआईएसएफ में जवान थे, अब दिल्ली में एक अखाड़ा चलाते हैं। अजीत सिंह नौकरी की वजह से दिल्ली में रहते थे, और उनका परिवार गांव में। ऐसे में दिव्यांगता की वजह से विरेंद्र सिंह का बचपन बिल्कुल आसान नहीं रहा। साथ के बच्चे उनका मजाक उड़ाते थे। लेकिन किस्मत इंसान को उसकी मंजिल तक पहुंचा ही देती है। संयोग से विरेंद्र सिंह के पैर में एक चोट लगी और उन्हें इलाज के लिए उनके पिता के पास दिल्ली भेजा गया।

विरेंद्र सिंह के पिता अजीत अपने इस दिव्यांग बेटे को इलाज के तुरंत बाद गांव भेजना चाहते थे, लेकिन अजीत सिंह के दोस्त सुरेंद्र सिंह ने विरेंद्र सिंह का वापस गांव नहीं जाने दिया।
सुरेंद्र सिंह अपने साथ वीरेंद्र सिंह को सीआईएसएफ अखाड़ा साथ ले जाने लगे। ड्यूटी खत्म करने के बाद अजीत सिंह और सुरेंदर इस अखाड़े में कुश्ती लड़ते थे। यहीं से विरेंद्र सिंह की कुश्ती में दिलचस्पी बढ़ने लगी और वे इस खेल में हाथ आजमाने लगे।

विरेंदर की प्रतिभा को देखकर सुरेंद्र सिंह ने उन्हें ट्रेनिंग देने की जिम्मेदारी उठाई। 9 साल की उम्र पहलवानी शुरू करने वाले विरेंद्र सिंह ने कुश्ती के क्षेत्र में कई बार देश का नाम रोशन किया है। विरेंद्र सिंह को साल 2002 में राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। वर्ल्ड कैडेट रेसलिंग चैंपियनशिप 2002 के नेशनल राउंड्स में उन्होंने गोल्ड जीता। साल 2005 में विरेंद्र सिंह को डेफलिम्पिक्स के बारे में पता चला। उन्होंने इसमें भाग लिया और गोल्ड जीता।
अब तक विरेंदर सिंह ने चार डेफलिम्पिक्स गेम्स और दो वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में भाग लिया है, जिनमें अब तक उन्होंने 3 गोल्ड, 1 सिल्वर और 2 ब्रोंज मेडल अपने नाम किये हैं। खेलों में उनके योगदान के लिए उन्हें ‘अर्जुन अवॉर्ड’ से भी नवाज़ा गया है। लेकिन अगर देखा जाए तो इस प्रतिभाशाली खिलाड़ी को वह मान और सम्मान नहीं मिल पाया है, जैसा कि देश के अन्य खिलाड़ियों सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त को मिला है।

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