दोस्तों, आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर के दो राजनीतिक दलों पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जैसे ही राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश किया, उसके ठीक आधे घंटे के भीतर राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधानसभा भंग कर दी।

जानकारी के लिए बता दें कि पीडीपी मुखिया महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल सत्यपाल मलिक को राज्य में सरकार बनाने के लिए जो चिटठी भेजी थी, उसमें कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के समर्थन की बात कही गई थी। इस राजनीतिक घटना को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि करीब 16 साल बाद जम्मू-कश्मीर में इस तरह के हालात बने थे। साल 2002 में भी पीडीपी-कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के समर्थन से पांच साल तक सरकार चलाई थी।

जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग होने को लेकर बीजेपी के महासचिव राम माधव ने कहा है कि कश्मीर में सरकार बनाने की कोशिशों के पीछे पाकिस्तान का हाथ हो सकता है। खैर जो भी हो पर इतना तो तय है कि लोकसभा चुनाव 2019 से पहले बीजेपी के खिलाफ जम्मू-कश्मीर में महागठबंधन बनने की जो कवायद शुरू हुई थी, राज्यपाल ने विधानसभा भंग करके इन कोशिशों की बीच में ही हवा निकाल दी।

इस बारे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने बयान दिया है कि राज्य की सभी पार्टियां मिलकर सरकार बनाने की सोच रही थीं, लेकिन केवल अफवाहों पर विधानसभा भंग कर दी गई, यह भाजपा की तानाशाही है। इस स्टोरी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि जम्मू कश्मीर विधानसभा भंग होने से राज्य में सियासी दलों को कितना फायदा-नुकसान पहुंचा है।

बीजेपी को होने वाला फायदा-नुकसान
जम्मू-कश्मीर में पहली बार बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार बनी थी, जो करीब 40 महीने ही तक ही चल पाई। तालमेल के अभाव में राज्य में 25 सीटें जीतने के बावजूद भी बीजेपी के विधायक 6 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। बीजेपी के विरूद्ध एक दूसरे के कटटर विरोधी दल नेशनल कान्फ्रेंस और पीडीपी व कांग्रेस सरकार बनाने की कवायद में जुटे थे। लेकिन विधानसभा भंग होते ही राज्य में इनकी सरकार नहीं बन सकी। अगर ऐसा हो जाता तो लोकसभा चुनाव 2019 में ये तीनों दल बीजेपी के खिलाफ एक बड़ी ताकत बन सकते थे।

पीडीपी को होने वाला फायदा-नुकसान
कुल 28 विधायकों के साथ जम्मू-कश्मीर में पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। लेकिन भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद भी पार्टी के 6 विधायकों और एक सांसद ने पार्टी से बगावत की। पार्टी की संभावित टूट को बचाने के लिए पीडीपी ने अपने धुर विरोधी कान्फ्रेंस और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की कवायद शुरू की, इससे पहले ही राज्यपाल ने विधानसभा भंग कर दी।

नेशनल कान्फ्रेंस को होने वाले फायदे-नुकसान
हांलाकि नेशनल कान्फ्रेंस प्रमुख उमर अब्दुल्ला लगातार विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर रहे थे, लेकिन वह चुनाव के लिए राजी नहीं थे। ऐसे में अगर राज्य में तीसरे मोर्चे की सरकार बनती तो उनकी पार्टी के विधायक भी टूट सकते थे। इस प्रकार विधानसभा भंग होने से नेशनल कान्फ्रेंस विधायकों की टूट से बच गई। हां, इतना नुकसान जरूर हुआ कि जम्मू-कश्मीर में महागठबंधन की सरकार नहीं बन सकी। बता दें कि राज्य में नेशनल कान्फ्रेंस के पास 15 विधायक थे।

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