जहां एक तरफ लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर पूरे देश में सियासी घमासान मचा हुआ है, वहीं दूसरी ओर बिहार में मुख्य राजद अपनी अंदरूनी मुश्किलों के चलते जबर्दस्त ढंग से घिरी हुई है। बता दें कि राजद मुखिया लालू यादव चारा घोटाले में सजा मिलने की वजह से इस चुनाव में सक्रिय नहीं हो पाने को पूरी तरह से मजबूर हैं।जबकि लालू यादव के बच्चों की बीच राजद में वर्चस्व की जंग छिड़ी हुई है। माता-पिता के दबाव के चलते इस लड़ाई को अभी तक काफी हद तक दबा कर रखा गया है, लेकिन यदि लोकसभा चुनाव 2019 में नतीजे पार्टी के पक्ष में नहीं रहे, कलह की यह स्थिति विस्फोटक हो भी सकती है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि वर्तमान में औपचारिक और अनौपचारिक दोनों रूप से राष्ट्रीय जनता दल पर लालू-राबड़ी के छोटे बेटे तेजस्वी यादव का दबदबा कायम है। क्योंकि राजद मुखिया लालू यादव ने उन्हें ही अपना सियासी वारिस माना है।
यही वजह रही कि साल 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद जब महागठबंधन की सरकार बनी, तब तेजस्वी यादव को ही उप मुख्यमंत्री बनाया गया। आज भी राजद से जुड़ा हर अहम फैसला तेजस्वी यादव ही पिता की सहमति से ले रहे हैं और वही गठबंधन में शामिल बाकी दलों के नेताओं से भी बात करते हैं। पार्टी में उनका वर्चस्व इस कदर है, कि उनके सामने न तो उनकी बड़ी बहन मीसा भारती बोल पाती हैं और न ही उनके सामने बड़े भैया तेज प्रताप यादव की एक सुनी जाती है।

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, जब तेजस्वी दिल्ली में क्रिकेट खेलते थे। तब वो राजनीति में आए, इ​सलिए तेजस्वी ने कड़ी मेहनत और समर्पण से राजद और बिहार की राजनीति में अपना एक स्थान कायम किया।
वहीं दूसरी तरफ तेज प्रताप अपने बर्ताव के कारण कई बार अपने माता-पिता और पार्टी को दुविधा में डाल चुके हैं। हांलाकि उन्होंने तुरंत ही खुद को कृष्ण और छोटे भाई को अर्जुन के रूप में पेश कर स्थिति की गंभीरता को तुरंत ही हल्का भी बनाने की कोशिश की है। हांलाकि इसके विपरीत तेज प्रताप ये भी दावा कर चुके हैं कि पार्टी में कुछ ऐसे लोग हैं, जो पार्टी और परिवार दोनों को बांटना चाहते हैं।

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