इंटरनेट डेस्क। 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या से मिली सहानुभूति का सीधा फायदा कांग्रेस को​ मिला था, लिहाजा इस पार्टी ने 401 सीटों पर ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। जाहिर है राजीव गांधी ने 31 अक्तूबर को 1984 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। 3 दिसम्बर 1984 को भोपाल गैस कांड में हरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट के रिसाव से हजारों लोगों की मौत हुई थी।

इस कंपनी के चेयरमैन वारेन एंडरसन को पहले 4 दिन बाद हिरासत में लिया गया, इसके बाद उस पर कुछ जुर्माना लगाकर उसे रिहा कर दिया गया। जिससे वह अमेरिका भाग गया। इसके बाद वह दोबारा भारत नहीं आया। उन दिनों केंद्र और राज्य दोनों जगह कांग्रेस की सरकार थी, कुछ लोगों ने यह आरोप लगाना शुरू किया कांग्रेस के मदद से एंडरसन अमेरिका भाग गया।

इस घटना के ठीक दो साल बाद यानि 1986 में शाहबानों प्रकरण में देशभर के इस्लामिक संगठन सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने लगे। कहा जाता है कि कांग्रेस को अपना वोट बैंक खिसकता दिखाई दे रहा था, ऐसे में उसने संसद में इस्लामिक बिल पास कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने का काम किया।

कांग्रेस के इस फैसले से हिंदूवादी संगठन उग्र होते जा रहे थे, उन्हें संतुष्ट करने के लिए राजीव गांधी की सरकार ने विवादस्पद बाबरी मस्जिद में बने एक छोटे से पूजा घर का ताला खुलवा दिया था। गौरतलब है कि अयोध्या की एक जिला अदालत के विरूद्ध जाकर यह फैसला लिया गया था। राम मंदिर का ताला खुलते ही विश्व हिंदू परिषद की उम्मीदें जग गई और इस आंदोलन तेज करने का निर्णय लिया गया।

लिहाजा 6 दिसम्बर 1992 को कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद ढहा दी। देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में उपरोक्त बातों को सिलसिलेवार ढंग से लिखा है। उन्होंने लिखा है कि तत्कालीन सरकार के इस फैसले से आधुनिक राजनेता बतौर राजीव गांधी की ​छवि पर बुरा असर पड़ा था।

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