इंदिरा गांधी ने क्यों लिया इमरजेंसी लगाने का बड़ा फैसला, कारण जान चौंक जाएंगे
भारत की आयरन लेडी इंदिरा गांधी एक ऐसी महिला है जिनका नाम इतिहास में अमर रहेगा। वे भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री थी। 19 नवंबर 1917 में जन्मी इंदिरा का बचपन देश की राजनीति के इर्द-गिर्द ही बीता था। अपने शासन के दौरान इंदिरा ने कई बड़े फैसले लिए और इमरजेंसी भी एक ऐसा ही फैसला था।
साल 1975 से 1977 तक इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लागू की और ये एक ऐसा फैसला था जिसने लोगों के जीवन को मानों बदल कर रख दिया हो। अगर आप इमरजेंसी से परीचित नहीं हैं तो बता दें कि आपातकाल तब होता है जब अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण आम जनता के मौलिक अधिकारों को छीन लिया जाता है।
अघोषित आपातकाल तब होता है जब सरकार वास्तव में आपातकाल की घोषणा किए बिना आपके मौलिक अधिकारों को छीन सकती है और यह इंदिरा गांधी के शासनकाल में हुआ था।
लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर इंदिरा गांधी ने आपातकाल क्यों लागू किया ? दरअसल एक मुकदमे में जो उनके खिलाफ साबित हुआ उसी के कारण इंदिरा गांधी को इमरजेंसी लागू करनी पड़ी। हम बात कर रहे हैं 'राजनारायण बनाम उत्तर प्रदेश’ मुकदमे की।
इस मुकदमे में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनावों में धांधली का दोषी पाया था। 12 जून 1975 को सख्त जज माने जाने वाले जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने फैसला सुनाया कि अब इंदिरा कहीं से कोई चुनाव नहीं लड़ सकती है और ये रोक उन पर 6 सालों के लिए लगी। ऐसी स्थिति में इंदिरा गांधी के पास राज्यसभा में जाने का रास्ता भी नहीं बचा। उन्हें पीएम पद छोड़ना ही पड़ा और इसके लिए 25 जून, 1975 की आधी रात से इंदिरा ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी।
इस मुद्दे के बारे में हम आपको गहराई से बताने जा रहे हैं। शुरुआत तब हुई जब इंदिरा गांधी उत्तर प्रदेश के रायबरेली से एक लाख से भी ज्यादा वोटों से चुनी गई थीं। लेकिन इस सीट पर उनकी जीत को उनके प्रतिद्वंदी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी राजनारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। यह मुकदमा ‘इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण’ के नाम से चर्चित हुआ।
याचिका में प्रधानमंत्री पर भ्रष्ट प्रथाओं के माध्यम से चुनाव जीतने का आरोप लगाया गया था। यह भी इल्जाम उन पर लगा कि उन्होंने अनुमति से अधिक पैसा खर्च किया।
हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में राजनारायण ने इंदिरा गांधी पर भ्रष्टाचार और सरकारी मशीनरी और संसाधनों के दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। राजनारायण के वकील शांतिभूषण थे।
12 जून, 1975 को, न्यायमूर्ति सिन्हा ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनके किसी भी चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। लेकिन उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने के लिए 20 दिनों का समय दिया गया था।
23 जून को इंदिरा गांधी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए दरख्वास्त की कि हाईकोर्ट के फैसले पर पूर्णत: रोक लगाई जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश को ही माना और कहा कि गांधी संसद में उपस्थित हो सकते थे, लेकिन जब तक अदालत ने उनकी अपील पर फैसला नहीं सुनाएगी, तब तक मतदान करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। कुछ तो यहां तक मानते हैं कि यदि यह फैसला इंदिरा गांधी के खिलाफ न जाता तो इंदिरा गांधी कभी आपातकाल लागू नहीं करती।