डॉ. भीमराव अंबेडकर आखिर क्यों नहीं बने मुसलमान ?
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दोस्तों, आपको जानकारी के लिए बता दें कि 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने लाखों समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। हालांकि अनुयायियों की संख्या को लेकर अभी तक मतभेद है। बौद्ध धर्म ग्रहण करते समय उन्होंने जो 22 प्रतिज्ञाएं लीं, उससे हिंदू धर्म और उसकी पूजा पद्धति को उन्होंने पूर्ण रूप से त्याग दिया।
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने हिंदूओं को एक बीमार भारतीय बताया था, जिनकी बीमारी अन्य भारतीयों के स्वास्थ्य और प्रसन्नता के लिए घातक है। बता दें कि बौद्ध धर्म ग्रहण करने से पहले उन्होंने इस्लाम के बारे में भी गहरा अध्ययन किया था, लेकिन उन्होंने यह धर्म क्यों नहीं अपनाया इसी बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
-आधुनिक इतिहासकार बद्री नारायण के मुताबिक, डॉ. भीमराव अंबेडकर इस्लाम धर्म की कई कुरीतियों के खिलाफ थे।
- डॉ. अंबेडकर का मानना था कि इस्लाम में भी हिंदू धर्म की तरह ऊंची जातियों का बोलाबाला है, जिसके चलते इस्लाम में भी दलित हाशिए पर हैं।
- दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शम्सुल इस्लाम के अनुसार, भीमराव अंबेडकर ने इस्लाम अपनाने पर विचार किया था, लेकिन अपनाया नहीं। वह मानते थे कि इस्लाम में भी उतना ही जातिवाद है, जितना कि हिंदू धर्म में।
- डॉ. अंबेडकर का मानना था कि मुसलमानों में कुछ वर्ग ऐसा है, जो हिंदू धर्म के ब्राह्मणों की तरह ही सोचता है।
- डॉ. अंबेडकर ने एक बार कहा था कि भारत का भाग्य तभी बदलेगा जब हिंदू और इस्लाम धर्म के दलित ऊंची जाति की राजनीति से मुक्त हो पाएंगे।
- डॉ. अंबेडकर इस्लाम में महिलाओं की दयनीय स्थित पर चिंतित थे, वह बहु विवाह प्रथा के खिलाफ थे।
- मुगल शासकों ने मनुस्मृति को पूरी तरह अपनाया था जबकि अंबेडकर मनुस्मृति के पूरी तरह से खिलाफ थे।
- भारत आने वाले मुगल शासकों ने भी हिंदू धर्म की ऊंची जातियों के साथ समझौता कर लिया था।