आपको याद दिला दें कि साल 2006 में अमृता शेरगिल की एक पेंटिंग पूरे 6.9 करोड़ रुपए में नीलाम हुई थी। यह किसी पेटिंग के लिए भारत में अदा की गई सबसे ज्यादा रकम है। जी हां, भारत की पहली बोल्ड, बेबाक और सबसे महंगी पेंटर अमृता शेरगिल ने उस जमाने में जैसी पेंटिंग्स बनाई, अगर आज कोई बना दे तो तहलका मच जाए। हांलाकि उनकी पेंटिंग्स का विरोध तब भी हुआ था, लेकिन आजकल के जमाने में तो जमकर ट्रोलिंग होती है या फिर स्याही फेंकी जाती है।

30 जनवरी 1913 को बुडापेस्ट हंगरी में जन्मी अमृता शेरगिल के पिता उमराव सिंह शेरगिल एक अमीर सिख परिवार थे, जो पांच भाषाएं जानते थे। अमृता की मां एंटोनिएट इटली की थीं।

अमृता शेरगिल साल 1921 में भारत आईं और शिमला में मूर्ति गढ़ना सीखा। इसके तीन साल बाद इटली जाकर पेंटिंग का कोर्स किया। इटली में महज 5 महीने रहने के बाद अमृता शेरगिल वापस शिमला लौट आईं। साल 1929 तक वह शिमला में रहीं और पूरा देश घूमती रहीं।

अमृता ने 16 साल की उम्र में पेरिस से पेंटिंग की प्रॉपर ट्रेनिंग ली, फ्रेंच सीखी, पियानो और वायलिन बजाना सीखा था। उनके स्वभाव का खुलापन उनकी पेंटिंग्स में साफ दिखता था।

1930 में अमृता को पोट्रेट ऑफ ए यंग मैन के लिए एकोल अवॉर्ड मिला। इसके बाद 1933 में अमृता को एसोसिएट ऑफ ग्रैंड सैलून चुना गया। इतनी कम उम्र में यह सम्मान पाने वाली पहली एशियाई थीं अमृता शेरगिल। पैसे के बदले पोट्रेट बनवाने वाले लोगों से वह चिढ़ती थीं।

अमृता शेरगिल के फैन्स में से एक जवाहरलाल नेहरू भी थे। आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि अमृता शेरगिल ने जवाहरलाल नेहरू का पोट्रेट नहीं बनाया। अमृता शेरगिल कहती थीं कि जवाहरलाल नेहरू इतने खूबसूरत हैं कि उनकी तस्वीर को पेंट नहीं किया जा सकता। गौरतलब है कि 28 साल की छोटी सी जिंदगी में अमृता शेरगिल ने कई उतार-चढ़ाव देखे। अपने करियर में मिसाल पेश की और लौट गई सितारों की दुनिया में।

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