यह एक दिलचस्प विचार है, जैसा कि हम जानते है अभी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी है और अभी देश में महामारी कोरोना फैला हुआ है, और अभी पूरा देश मोदी जी का आदेश लॉकडाउन का पालन कर रहे है , लोग उनके आदेश पर ताली-थाली बजाने और दीया-मोमबत्ती जलाने की अपीलों पर अमल करते रहे. है। आज अगर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री होते और कोरोनावायरस से लड़ाई का नेतृत्व कर रहे होते तो शायद यह सब मुमकिन न होता।

मनमोहन सिंह की मद्धिम आवाज़, विनम्र चाल-ढाल और भारत भर में अपनी राजनीतिक पूंजी या प्रशंसकों की जमात का अभाव इस महामारी से जंग में उनके लिए भारी अड़ंगे पैदा करता, जरा कल्पना कीजिए, रात आठ बजे वे देश के नाम अपने संदेश में लोगों से घरों के अंदर रहने की अपील कर रहे हैं, मगर उनके अपने मंत्री ही एक आवाज़ में नहीं बोल रहे हैं।

लेकिन मोदी के राज में भारत इससे अलग है,,दोनों सरकारों के बीच केवल इसी तरह का फर्क नहीं है, दोनों सरकार, यानी एक तो 2004-14 के बीच चली मनमोहन सिंह सरकार जो उनके व्यक्तित्व की प्रतिबिंब थी और जिस सरकार में वे उन तमाम दूसरे लोगों में एक थे जिनकी चलती थी और दूसरी प्रधानमंत्री मोदी की सरकार जिसमें केवल उनकी आवाज़ वजन रखती है।

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