फ़िरोज़ गांधी का अंतिम संस्कार किस रीति-रिवाज से किया गया था ?
दोस्तों, यह बात 7 सितंबर 1960 की है, जब फ़िरोज़ गांधी को दिल का दौरा पड़ा था। तब इंदिरा गांधी हवाई अड्डे से सीधे वेलिंगटन अस्पताल पहुंची, जहां उनका इलाज चल रहा था। इंदिरा गांधी की सहायक ऊषा भगत वेलिंगटन अस्पताल में पहले से ही मौजूद थीं। उन्होंने इंदिरा गांधी को बताया कि पूरी रात फिरोज जब भी होश में आते थे, तब यही पूछते थे कि इंदु कहां है? बता दें कि फिरोज गांधी के अंतिम समय में इंदिरा उनके बग़ल में ही मौजूद थीं।
8 सितंबर की सुबह फिरोज गांधी को कुछ समय के लिए होश आया, लेकिन कुछ देर बाद वह फिर बेहोश हो गए और 7 बज कर 45 मिनट पर उन्होंने आख़िरी सांस ली। बता दें कि अपने 48वें जन्मदिन से ठीक 4 पहले ही फिरोज गांधी यह दुनिया छोड़ गए। फ़िरोज़ के पार्थिव शरीर को लेकर इंदिरा गांधी वेलिंगटन अस्पताल से सीधे तीन मूर्ति भवन पहुंचीं।
इंदिरा की जीवनी लिखने वाली कैथरीन फ़्रैंक के अनुसार, इंदिरा गांधी ने इस बात पर जोर दिया कि वह खुद ही फिरोज के शव को नहलाकर अंतिम संस्कार के लिए तैयार करेंगी। इस दौरान वहां कोई मौजूद नहीं रहेगा। इसके बाद तीन मूर्ति भवन के निचली मंजिल से फ़र्नीचर हटवा दिए और कालीनों पर सफ़ेद चादरें बिछा दी गईं। इसके बाद उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई।
संजय और राजीव गांधी सफेद चादर पर चुपचाप बैठे हुए थे। नयनतारा सहगल के मुताबिक, पंडित अपने कमरे में अकेले बैठे हुए थे और बार-बार यही कह रह थे कि उन्हें इस बात की जरा भी उम्मीद नहीं थी कि फिरोज इतनी जल्दी चले जाएंगे।
पंडित नेहरू पर किताब लिखने वाली मेरी सेटॉन उन दिनों तीन मूर्ति भवन में ही रह रही थीं। वह अपनी किताब में लिखती हैं कि नेहरू का चेहरा पीला पड़ा हुआ था, वह संजय के साथ उस कमरे में आए जहां फ़िरोज़ का शव लोगों के अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था। वहां मौजूद भीड़ देखकर नेहरू ने कहा था कि मुझे पता नहीं था कि फिरोज लोगों के बीच इतने लोकप्रिय हैं।
इंदिरा खुद को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन उनकी आंखों से आंसू निकल रहे थे। 9 सितंबर को तिरंगे में लिपटे फ़िरोज़ के पार्थिव शरीर के साथ राजीव, संजय, इंदिरा और फ़िरोज़ गांधी की बहन तहमीना भी एक ट्रक पर सवार हुईं। निगमबोध घाट पर 16 साल के राजीव गांधी ने फ़िरोज़ की चिता को आग लगाई। इस प्रकार फिरोज गांधी का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों से किया गया।
अंतिम संस्कार के ठीक 2 दिन बाद फिरोज गांधी के अस्थि कलश को एक ट्रेन से इलाहाबाद ले जाया गया। जहां उसका एक भाग संगम में प्रवाहित किया गया तो दूसरा भाग इलाहाबाद की पारसी क़ब्रगाह में दफ़ना दिया गया। जब फिरोज गांधी की अस्थियां संगम में प्रवाहित की गई, उस समय वहां पंडित जवाहरलाल नेहरू भी मौजूद थे। फ़िरोज़ गांधी के दोस्त आनंद मोहन के मुताबिक, उनकी अस्थियों के कुछ हिस्से को सूरत में फिरोज गांधी की पुश्तैनी कब्रगाह में भी दफ़नाया गया।