आपको जानकारी के लिए बता दें कि साल 2013 में वरुण गांधी को भाजपा के इतिहास में सबसे कम उम्र में महासचिव तथा पश्चिम बंगाल का प्रभारी बनाया गया था। लेकिन लोकसभा चुनाव 2014 के बाद वरुण गांधी से सारे पद और जिम्मेदारियां छिन गईं। यहां तक कि सांसदों के वेतन और रोहिंग्याओं की वापसी जैसे संवदेनशील मुद्दे पर वरुण गांधी को बकायदा ​प्रधानमंत्री कार्यालय से हिदायतें जारी की गईं कि अपनी बयानबाजी से पार्टी की मुश्किलें नहीं बढ़ाएं।

आज की तारीख में सच्चाई सिर्फ यह है कि 40 साल से भी कम उम्र का एक तेज-तर्रार युवा नेता महज सुल्तानपुर का सांसद बनकर रह गया है। लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या यह युवा नेता केवल संसद बनकर ही खुश है? खबरों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव 2019 में उन्हें सुलतानपुर से टिकट मिलना भी अभी तय नहीं है।

सुलतानपुर से टिकट नहीं मिलने की एक वजह यह भी है
अमेठी राजपरिवार के वारिस संजय सिंह इन दिनों कांग्रेस से राज्यसभा सांसद हैं। संजय सिंह की पत्नी अमीता सिंह साल 2014 में सुल्तानपुर संसदीय क्षेत्र से वरुण गांधी के खिलाफ चुनाव हार गईं थीं। इसके बाद साल 2017 में अमिता सिंह संजय सिंह की पहली पत्नी और बीजेपी उम्मीदवार गरिमा सिंह के खिलाफ चुनाव हार गई थीं। ऐसे में सुल्तानपुर तथा आसपास के क्षेत्रों में अपनी साख बचाने के लिए संजय सिंह बीजेपी के प्रभाव क्षेत्र में जा सकते हैं।


भाजपा हाईकमान के लिए वरुण गांधी की उपयोगिता

जहां तक भाजपा हाईकमान का वरुण गांधी से संतुष्टि का सवाल है, पार्टी के लिए अब उनकी कोई उपयोगिता नहीं दिखती है। घोषित स्टैंड के अनुसार, वरुण गांधी कभी भी सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के खिलाफ कुछ नहीं बोलते हैं।

इसमें कोई शक नहीं है कि वरुण गांधी के साथ प्रियंका गांधी के रिश्ते बेहद मधुर हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी में प्रियंका गांधी का महासचिव बनना वरुण के लिए कांग्रेस में शामिल होने के रास्ते आसान बना सकते हैं। इतना तो तय है कि बिना किसी तात्कालिक वजह के वरुण गांधी भाजपा को नहीं छोड़ सकते हैं। क्योंकि वह अपनी छवि कभी भी आयाराम-गयाराम वाली नहीं बनाना चाहेंगे।

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