1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई जंग करीब 22 दिन तक चली थी। इस जंग में अज्जमदा देवय्या ने भारत के पुराने लड़ाकू विमान मिस्टीर से मॉडर्न पाकिस्तानी स्टारफाइटर को धूल में मिला दिया था। बात दें कि मिस्टीर के मुकाबले पाकिस्तान का लड़ाकू विमान दुगना तेज, ताकतवार और साइडविडर मिसाइलों से युक्त था। लेकिन भारतीय वायुसेना के इस महावीर की बहादुरी करीब 23 साल तक गुमनामी में रही।

जानकारी के लिए बता दें कि पाकिस्तान के हवाई हमले का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारतीय वायुसेना ने सरगोधा पर हमले का निर्णय लिया था। इस ​हमले की जिम्मेदारी मिली थी कमांडिंग अफसर ओपी तनेजा को। ओपी तनेजा 4 लड़ाकू विमानों के पहले जत्थे का नेतृत्व कर रहे थे। जबकि 100-100 गज का दूरी पर 2 जत्थे और थे। युद्ध रणनीति की गोपनीयता बनाए रखने के लिए पायलटों को रेडियो संपर्क से मना किया गया था। इसलिए एक जत्था रास्ता भटक गया। दो लड़ाकू विमानों को इंजन में गड़बड़ी के कारण लौटना पड़ा। तब अज्जमदा बोपय्या देवय्या ने पुराने पड़े चुके मिस्टीर विमान से उड़ान भरी।

अज्जमदा बोपय्या देवय्या के लड़ाकू विमान मिस्टीर ने जैसे ही सरगोधा हवाई अड्डा पार किया, गस्त पर निकला पाकिस्तानी विमान स्टारफाइटर इनके पीछे लग गया। मिस्टीर का ईंधन भी खत्म होने वाला था, इस फायदा उठाते हुए स्टारफाइटर ने इस लड़ाई का सबसे मारक मिसाइल साइडविडर दाग दिया। लेकिन अज्जमदा बोपय्या देवय्या ने अपने विमान मिस्टीर का तेजी से बचाव करके सबको चौंका दिया।

जवाबी हमले में देवय्या ने चोट खाये जहाज को संभालते हुए स्टारफाइटर पर पीछे से तोप से हमला कर दिया। नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तानी जहाज स्टारफाइटर के कॉकपिट में धुआं भर गया और फ्लाइट लेंफ्टिनेंट अमजद हुसैन ने छतरी के सहारे कूदकर जान बचाई। दूसरी तरफ देवय्या जहाज से कूदने के लिए पुरानी सीट खुलने का इंतजार करते रहे और उनका जहाज पाकिस्तानी जमीन पर धराशायी हो गया।

1979 में अंग्रेज लेखक जॉन फ्रीकर ने जब पाकिस्तानी वायुसेना का इतिहास लिखना शुरू किया, तब अज्जमदा देवय्या की बहादुरी सामने आई। मतलब साफ है, एक मामूली किस्म के भारतीय जहाज मिस्टीर ने सरगोधा के ऊपर पाकिस्तानी स्टारफाइटर को मार गिराया था।

एयर कमांडर प्रीतम सिंह ने इस किताब के जरिए सारे सबूत इकट्ठा कर वायुसेना के आलाकमान के सामने पेश किया। तब जाकर वायुसेना ने अपने हीरो को सम्मानित करने का फैसला किया। इस प्रकार 23 साल बाद राष्ट्रपति रामस्वामी वेंकटरमन ने देवय्या को महावीर चक्र से सम्मानित किया।

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