जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय सेना ने कई साहसी जनरल पैदा किए हैं, लेकिन शारीरिक और नैतिक साहस का सम्मिश्रण बहुत कम सेनानायकों में देखने को मिला। इन्हीं जांबाज सेनानायकों में से एक थे जनरल प्रेम भगत। ऐसा माना जाता है कि जनरल प्रेम भगत भारतीय सेना का सर्वोच्च पद कभी नहीं पा सके, लेकिन सेनाध्यक्ष बनने का अगर कोई असली हकदार था, तो वो थे प्रेम भगत।

जनरल प्रेम भगत की बेटी अशाली वर्मा की किताब विक्टोरिया क्रॉस-ए लव स्टोरी के मुताबिक, साल 1941 में जनरल प्रेम भगत ने सूडान के मोर्चे पर लगातार 96 घंटे जागकर 55 मील लंबी सड़क पर 15 बारूदी सुरंगें नष्ट कीं। इस बड़ी उपलब्धि के लिए उन्हें उस समय का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस दिया गया था।

लेखिका अशाली वर्मा के मुताबिक, जनरल प्रेम भगत की यह सोच थी कि युद्ध में जो जवान साथी वीर गति को प्राप्त हुए थे, उनको यह सम्मान मिलना चाहिए था। अशाली लिखती हैं कि वह इस बारे में कभी बात नहीं करते थे। हमें दूसरों से और पढ़कर इस बारे में पता चला कि उन्हें इतना बड़ा सम्मान मिल चुका है।

अशाली बताती हैं कि उन्होंने 4 दिन तक सोए बिना 55 मील लंबी सड़क पर बिछाई गए बारूदी सुरंगें हटाईं। इस क्रम में एक विस्फोट से उनके कान का पर्दा फट गया, जिससे वह आजीवन एक कान से नहीं सुन पाए।

वॉयसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने 2000 लोगों के समक्ष जनरल प्रेम भगत को विक्टोरिया क्रॉस प्रदान किया था। भारत-चीन युद्ध के बाद जनरल प्रेम भगत को देश की हार की जांच के लिए बनाई गई हेंडरसन भगत कमेटी का सदस्य बनाया गया। उन्होंने इतनी बेबाक रिपोर्ट पेश की, जिसे आज तक भारत सरकार सार्वजनिक करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई।

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