1971 का युद्ध शुरू होने से ठीक 2 महीने पहले भारतीय नौसेना अध्यक्ष एडमिरल एसएम नंदा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की थी। एडमिरल एसएम नंदा ने श्रीमती गांधी से पूछा कि अगर इंडियन नेवी कराची पर हमला करे तो क्या इससे सरकार को राजनीतिक रूप से कोई आपत्ति हो सकती है?

यह प्रश्न सुनते ही इंदिरा गांधी ने कहा-आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं? एडमिरल नंदा ने कहा कि 1965 के युद्ध में नौसेना को यह आदेश दिया गया था कि नेवी समुद्री सीमा से बाहर कोई कार्रवाई ना करे। ऐसे में उनके सामने कई समस्याएं उठ खड़ी हुई थीं। कुछ देर सोचने के बाद इंदिरा गांधी ने कहा कि कोई बात नहीं एडमिरल, अगर यु्द्ध है तो यु्द्ध है। एडमिरल नंदा ने कहा, धन्यवाद मैडम मुझे मेरा जवाब मिल गया।

1971 से ठीक एक साल पहले एडमिरल नंदा ने मशहूर अख़बार ब्लिट्ज़ को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर दोबारा युद्ध हुआ तो मैं इसे पाकिस्तान के सबसे बड़े बंदरगाह कराची तक ले जाऊंगा। मैं कराची बंदरगाह को अच्छी तरह से जानता हूं, क्योंकि मेरा बचपन वहां बीता है।

फिर क्या था, 1971 का युद्ध शुरू होते ही एडमिरल नंदा नौसेना के सभी युद्धपोतों को कराची पर हमला करने के आदेश दे दिए। यह आदेश मिला था कि दिन के समय सभी युद्धपोत कराची से 250 किमी की दूरी पर रहेंगे और शाम होते ही 150 किमी की दूरी पर पहुंच जाएंगे। कराची पर हमला भी रूस की ओसा क्लास मिसाइल बोट से किया जाएगा।

4 दिसंबर 1971 की रात कराची पर पहला हमला मिसाइल बोट निपट, निरघट और वीर ने किया। इस हमले में पाकिस्तानी विध्वंसक ख़ैबर और माइन स्वीपर मुहाफ़िज़ को डूबो दिया गया। इसके अलावा किमारी तेल टैंकों में जबरदस्त आग लग गई।

दूसरा हमला 8 दिसंबर की रात में किया गया। इस बार मिसाइल बोट विनाश से मिसाइल फ़ायर करने की ज़िम्मेदारी लेफ़्टिनेंट कमांडर विजय जेरथ की थी। जेरथ कहते हैं कि मैंने अपनी आख़िरी मिसाइल किमारी के तेल टैंकों पर छोड़ी और अपने कमांडिंग ऑफ़िसर को संदेश भेजा। उनका जवाब आया इससे अच्छी दिवाली हमने आज तक नहीं देखी।

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