नेहरू और मोदी की विदेश नीति में ये हैं समानताएं, भविष्य में ऐसे होंगे परिणाम !
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किसी भी देश के लिए 'विदेश नीति' एक अहम और अस्थायी दस्तावेज होती हैं, जो समय के साथ हमेशा बदलती रहती हैं। भारत की विदेश नीति का रचनाकार देश के पहले प्रधानमंत्री 'जवाहर लाल नेहरू' को कहा जाता हैं। नेहरू जी जब पीएम थे, तब उन्होंने विदेश मंत्री का अहम पद भी अपने पास ही रखा था। बता दे, नेहरू जी 17 वर्षों तक देश के पीएम रहे। इसी के साथ सर्वाधिक समय के लिए पीएम और विदेश मंत्री रहने का रिकॉर्ड भी उनके नाम हो गया।
विदेश मंत्री रहते हुए नेहरू जी ने अपने कार्यकाल में बहुत से राष्ट्राध्यक्षों को व्यक्तिगत मित्र बना लिया था। यही एक वजह थी कि, उन्होंने अमेरिका और सोवियत संघ की लड़ाई के बीच पिसते हुए राष्ट्रों का एक गुट निरपेक्ष संगठन बनाने में सफलता हासिल की। लेकिन यह संगठन साधनों की कमी की वजह से कभी सफल नहीं हो सका। जवाहर लाल नेहरू जी ने ही पंचशील का सिद्धांत दिया जो अब ख़त्म हो चुका हैं।
मौजूदा समय में देश के प्रधानमंत्री मोदीजी विदेश नीति में काफी हद तक नेहरूजी वाला स्वरुप ही दिखाई देता हैं। मोदीजी ने भी नेहरू जी की तरह व्यक्तिगत रिश्तों को विदेश नीति का अहम हिस्सा बना दिया है। सामान्य तौर पर विदेश नीति को कांग्रेस या भाजपा की विदेश नीति नहीं कहकर राष्ट्राध्यक्षों के नाम से जैसे नेहरू सरकार की विदेश नीति, ओबामा सरकार की विदेश नीति या मोदी सरकार की विदेश नीति कहा जाता हैं।
यह इसलिए भी ख़ास हैं क्योंकि लक्ष्य एक होते हुए भी पार्टी से अधिक राष्ट्राध्यक्ष की व्यक्तिगत सोच विदेश नीति को अधिक प्रभावित करती है। कहा जा सकता हैं कि, जैसी निष्ठा और रचनात्मकता के साथ हमारी विदेश नीति का निर्माण एवं क्रियान्वयन किया जा रहा हैं वो आगामी भविष्य में निश्चित रूप से अच्छे परिणाम ही देगा।
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