सियाचिन की भयंकर ठंड में जमकर डटे भारतीय सैनिकों का सच जानकर हो जाएंगे हैरान
इंटरनेट डेस्क। विश्व के सबसे ऊँचे युद्धक्षेत्र, सियाचीन में तैनात भारतीय सैनिकों की तरह जीवन जीना किसी भी आम आदमी के लिए संभव नहीं है। यह एक ऐसी जगह है जहां पर रहना बहुत मुश्किल है लेकिन भारतीय सैनिक इस जगह पर भी आसानी से रहते है। आज हम आपको सियाचीन में तैनात भारतीय सैनिकों के बारे में कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे है जिनको जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे।
भारतीय सैनिक 5400 मीटर ऊंचाई पर 76 किमी लंबी ग्लेशियर के ऊपर पाकिस्तान सेना का सामना करते हैं। यह ऊंचाई लद्दाख की ऊंचाई से लगभग दोगुनी है।
इस ऊंचाई पर तापमान हमेशा शून्य से 18 और शून्य से 60 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है।
इस जगह पर भारतीय सैनिकों के लिए पाकिस्तान से भी बड़ी चुनौती कठोर और दिल दहला देने मौसम का सामना करना है। यहां पर अगर आपकी त्वचा 15 सेकंड से अधिक समय तक बंदूक के ट्रिगर को छूती है तो आपको फ्रॉस्टबाइट होने का खतरा होता है।
एक व्यक्ति का शरीर 5400 मीटर से अधिक स्थितियों के लिए अनुकूल नहीं हो सकता है। यदि आप लंबे समय तक इस ऊंचाई पर रहते हैं, तो आप वजन कम हो जाता हैं, आपका खाना और सोना भी कम हो जाता हैं और आपकी याददाश्त भी कम हो जाती हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह आपके स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर सकती है।
वास्तविकता में सैनिक यहां पर हिमस्खलन के बीच रहते है और इसकी वजह से कई सैनिकों की मौत भी होती है। यहाँ पर हिमपात एक समय में तीन सप्ताह तक रह सकता है।
यहां तैनात हमारे सैनिकों को ताजा भोजन बहुत मुश्किल से मिलता है। एक सेब या नारंगी कुछ मिनटों में ही जमकर एक क्रिकेट बॉल तरह कठोर हो जाती है। यहां पर भोजन टिन के डिब्बे में उपलब्ध करवाया जाता हैं।
जहां एक तरह इन परिस्थितियों में जीवित रहना ही बहुत मुश्किल होता है, यहाँ पर रहने के लिये सैनिकों को विशेष कौशल हासिल करना पड़ता है जिसमें खाईयों को पार करना, 90 डिग्री बर्फ की दीवारों पर चढ़ना और इनको तोड़ना जैसे कार्य शामिल है।
ये सब चीज़ें इन सैनिकों को आधार शिविर में सियाचिन बैटल स्कूल में एक महीने में सिखाया जाता है। यही वह स्थान है केवल जहां पर आम लोग आ सकते है।
पिछले 30 वर्षों में, 850 से अधिक सैनिकों को सियाचिन में शहीद हुए है। उनके नाम नुबरा नदी के तट पर एक युद्ध स्मारक पर लिखे गए हैं।