पुलवामा आतंकी हमले के बाद देश की जनता की भावनाएं, सत्ता पक्ष और विपक्षी नेताओं के कड़े बयान, सोशल मीडिया के जरिए पाकिस्तान को सबक सिखाने की बातें इन दिनों चरम पर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यह बयान देते नजर आ रहे हैं कि पुलवामा हमले में शहीद हुए जवानों की एक-एक बूंद का हिसाब लिया जाएगा।

लेकिन इससे पहले भी पठानकोट, उड़ी हमला, 1993 में मुंबई में दर्जनभर विस्फोट, 2008 में मुंबई हमले आदि कई बड़ी आतंकी घटनाएं हो चुकी हैं। अगर युद्ध होना होता तो 13 दिसंबर 2001 को हो जाता, जब आतंकियों ने संसद भवन पर हमला किया था।

संसद हमले के दो दिन बाद रक्षा मंत्रालय ने भारतीय सेना को मार्चिंग ऑर्डर दे दिया था। 1971 के युद्ध के बाद सीमा पर भारतीय सेना की ये सबसे बड़ी तैनाती थी। लेकिन नतीजा क्या हुआ इसे पूरा देश जानता है।

इस बार भी लोकसभा चुनाव होने तक सभी राजनीतिक पार्टियां पुलवामा मुद्दे का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकती हैं। इसके लिए आर्थिक, सांस्कृतिक और एक दूसरे के विरूद्ध गुप्त कार्रवाईयां तेज हो सकती हैं, लेकिन भारत पड़ोसी देश पाकिस्तान पर हमला कर दें ऐसा संभव नजर नहीं आ रहा है।

अगर अमरीका को अफ़ग़ानिस्तान समस्या सुलझाने के लिए पाकिस्तान की ज़रूरत न होती तो अब तक ट्रंप साहब पुलवामा पर कम से कम पांच ट्वीट कर चुके होते। सुरक्षा परिषद में भारत के विरूद्ध चीन वीटो लगाने को तैयार बैठा है। इसलिए कुछ लोग पुलवामा हमले की आड़ में भारत-पाकिस्तान को चाहे जितना तपा लें लेकिन इन दोनों देशों के बीच युद्ध होना बहुत दूर की बात है।

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