इस कहानी की असली शुरूआत तब होती है, जब साल 1985 के सितंबर महीने में शहर सिविल लाइंस स्थित राम भवन में गुमनामी बाबा या भगवान जी की मौत होती है। गुमनामी बाबा की मौत के दो दिन बाद बड़े गोपनीय तरीके से इनका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। जब उनके कमरे से बरामद सामान पर लोगों की नजर गई तो सभी लोग यह कहने लगे कि गुमनामी बाबा कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे, बल्कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे।
अयोध्या में गुमनामी बाबा जिन-जिन जगहों पर रहें, बड़े गुप्त तरीके से रहे। स्थानीय लोगों की मानें तो गुमनामी बाबा इस इलाके में तकरीबन 15 साल रहे। गुमनामी बाबा 1970 के दशक में फैजाबाद पहुंचे थे। इसके बाद वे अयोध्या की लालकोठी में किरायेदार के रूप में रहा करते थे और इसके बाद कुछ समय प्रदेश के बस्ती शहर में भी बिताया लेकिन यहां लंबे समय तक उनका मन नहीं लगा और वे पुन: अयोध्या लौट आए।

बता दें कि गुमनामी बाबा जिस राम भवन में रहते थे, उसके मालिक शक्ति सिंह के मुताबिक, शहर के एक चिकित्सक डॉ. आरपी मिश्र के जरिए गुमनामी बाबा का संपर्क पूर्व नगर मजिस्ट्रेट और मेरे दादा ठाकुर गुरुदत्त सिंह से हुआ। इसके बाद पूरी गोपनीय तरीके से रात में वे राम भवन के उस उस हिस्से में शिफ्ट हो गए जो उनके लिए मुकर्रर किया गया था। शक्ति सिंह का कहना है कि उनसे मिलने बहुत सीमित लोग आते थे। कुछ लोग देर रात कार से भी आते थे और सुबह होने से पहले ही चले जाते थे। उनके नाम से चिट्ठियां भी आती थीं। गुमनामी बाबा ज्यादातर लोगों से पर्दे के पीछे रहकर ही बात करते थे। गुमनामी बाबा अंग्रेजी, जर्मन, बांग्ला समेत कई भाषाएं जानते थे। गुमनामी बाबा ने रामभवन में 2 साल बिताए।
गुमनामी बाबा की मौत के बाद उनके सुभाष चंद्र बोस होने का बल मिला। हांलाकि इस बारे में

गुमनामी बाबा के कमरे से मिली सुभाष चंद्र बोस के परिजनों की तस्वीरें....

अभी तक कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया था। लेकिन एक नई किताब में यह दावा किया गया है कि गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे।
इस किताब में यह दावा किया गया है कि अमेरिका के एक हैंडराइटिंग एक्‍सपर्ट ने सुभाष चंद्र बोस और गुमनामी बाबा की हैंडराइटिंग की जांच की और पाया कि ये एक ही शख्स की हैंडराइटिंग है।

गुमनामी बाबा के कमरे से मिले सुभाष चंद्र बोस से जुड़े जरूरी दस्तावेज...

हैंडराइटिंग एक्‍सपर्ट कार्ल बैग्‍गेट को दस्तावेजों की जांच करने का 40 साल का अनुभव है। इस तरह के करीब 5000 मामलों में उनकी मदद ली जा चुकी है। कार्ल ने जांच के बाद पाया है कि सुभाष चंद्र बोस देश की आजादी के कई साल बाद तक अपनी पहचान छिपा कर रहे, क्‍योंकि गुमनामी बाबा और बोस की हैंडराइटिंग शत-प्रतिशत मेल खाती है। इसका मतलब ये हुआ कि गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे। कार्ल बैग्‍गेट ने दस्‍तावेजों की जांच करने के बाद एक रिपोर्ट दी, जिस पर उन्‍होंने हस्‍ताक्षर भी किए हैं। इस रिपोर्ट में कार्ल ने यह लिखा है कि गुमनामी बाबा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस कोई दो शख्‍स नहीं थे, क्‍योंकि दोनों दस्‍तावेज एक ही शख्‍स द्वारा लिखे गए हैं।

Related News