सुप्रीम कोर्ट ने आज देश के लिए एक बड़ा फैसला सुनाया है। सरकारी नौकरी में आरक्षण की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रमोशन में आरक्षण देना जरूरी नहीं है। जस्टिस नरीमन ने अपने निर्णय में कहा कि नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही था, इस पर अब दोबारा विचार करने की जरूरत नहीं है। अब इस मामले को एक बार फिर से 7 जजों की पीठ के पास भेजना अनिवार्य नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि देश की राज्य सरकारें वर्ग के पिछड़ेपन और सार्वजनिक रोजगार में संबंधित वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता का डेटा एकत्र करना जरूरी नहीं है। हांलाकि संबंधित आंकड़े जारी करने के बाद राज्य सरकारें सरकारी नौकरी में प्रमोशन में आरक्षण देने का विचार कर सकती हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकारों को निम्नलिखित कारकों को ध्यान में रखकर नीति बनाने के निर्देश दिए हैं।

- वर्गों के पिछड़ेपन की स्पष्टता

- नौकरी में संबंधित वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता

- संविधान के अनुच्छेद 335 का अनुपालन

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि देश की राज्य सरकारें वर्ग विशेष के पिछड़ेपन का निर्धारण करके एकत्र आंकड़ों के आधार पर सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण दे सकती है। नागराज बनाम संघ के फैसले के अनुसार प्रमोशन में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकती है। इस सीमा को सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा है। क्रीमी लेयर के सिद्धांत को आधार बनाकर सरकारी नौकरियों की पदोन्नति में एससी-एसटी आरक्षण में लागू नहीं किया जा सकता।

गौरतलब है कि साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने सरकारी नौकरियों में प्रमोशन पर आरक्षण को लेकर फैसला दिया था, उस वक्त कुछ शर्तों के साथ इस व्यवस्था को उचित करार दिया था।

Related News