पाकिस्तान की गणेश चतुर्थी देखने के लिए जरूर पढ़ें यह रोचक खबर
दोस्तों, आज हम आपको इस स्टोरी के माध्यम से पाकिस्तान में मनाई जाने वाली गणेश चतुर्थी से रूबरू कराने की कोशिश करेंगे। आपको बता दें कि पाकिस्तान में कुछ मराठियों का भी समुदाय है, जिनकी संख्या बहुत कम है।
कराची के क्लिफ़टन इलाक़े के लोग एकत्र होकर सबसे पहले एक प्रार्थना सभा का आयोजन करते हैं। जबकि सोने के गहने और रंग-बिरंगी साड़ियां पहनकर महिलाएं जमीन पर बैठकर भगवान गणपति के लिए मोदक बनाती हैं।
क्लिफ़टन इलाक़े के रहने वाले देव आनंद की पत्नी मलका के अनुसार, हम लोगों ने ये सारे मोदक भगवान गणेश के लिए तैयार किए हैं, क्योंकि मोदक उनका सबसे प्रिय भोजन है। पारंपरिक तौर पर इस मोदक को नारियल, गुड़ और सूजी और चावल के आटे से तैयार किया जाता है। हांलाकि यहां भी लोग अब वनीला फ़्लेवर मोदक और चॉकलेट मोदक बनाने लगे हैं।
त्यौहार के दौरान मलका पूरे घर को बेहद खूबसूरती से सजा रखा था, लेकिन देव आनंद थोड़े से परेशान दिखे, क्योंकि वह हर साल भगवान गणेश की मूर्ति दुबई के रास्ते भारत से मंगवाते थे। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो सका।
देव आनंद के अनुसार, पाकिस्तान में बनी मूर्तियों की फ़िनिसिंग वैसी नहीं होती जैसा कि भारत में होती है। मराठी समुदाय के लोगों ने गणेश मूर्ति की स्थापना विधिवत रूप से कराची के प्राचीन रत्नेश्वर महादेव मंदिर की थी। सैंकड़ों साल पुराना यह मंदिर क्लिफ़टन इलाक़े में समुद्र के किनारे स्थित है।
देव आंनद का कहना है कि गणेश चतुर्थी के अवसर पर हर बार यहां करीब 500 लोग एकत्र होते हैं। किसी तरह की कोई रोक-टोक नहीं होती है। मंदिर के पुजारी रवि महाराज भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करते हैं। दूध और शहद से अभिषेक करने के बाद भगवान गणपति को कई तरह के फूल-फल अर्पित किए जाते हैं।
पूरे सिंध प्रांत से लोग यहां एकत्र होते हैं। यहां मौजूद सभी लोग भगवान गणेश की पूजा करते हैं। इसके बाद अगले दिन शाम को एक बार फिर से इकट्ठा होकर गणपति के जयकारे लगाते हुए मूर्ति को अरब सागर में विसर्जित करते हैं। इस दौरान गीत गाए जाते हैं, लोग नाचते हैं, इसी के साथ गणेश चतुर्थी का यह पर्व समाप्त हो जाता है।