आपको जानकारी के लिए बता दें कि कांग्रेस महासचिव बनने से पहले भी पिछले छह महीने से प्रियंका गांधी पार्टी में पर्दे के पीछे सक्रिय थीं। बता दें कि अशोक गहलोत को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाने तथा सचिन पायलट को मनाने का काम भी उन्होंने ही किया था। लोकसभा चुनाव 2019 के मद्देनजर जब यूपी में सपा-बसपा गठबंधन हुआ तब राहुल और प्रियंका के बीच इस मुद्दे पर एक लंबी बैठक हुई। प्रियंका इस बात के लिए कत्तई राजी नहीं हुईं कि महज कुछ सीटें लेकर कांग्रेस महागठबंधन में शामिल हो। इसलिए उन्होंने राहुल गांधी को यूपी में मजबूत बनाने के लिए सक्रिय राजनीति में उतरने का फैसला कर लिया तथा स्वयं ही पूर्वी उत्तर प्रदेश का मैदान भी चुन लिया।

कांग्रेस की महासचिव बनते ही प्रियंका गांधी के 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ने की अटकलें तेज हो चुकी हैं। ऐसी भी अटकलें चल रही हैं कि प्रियंका गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ सकती हैंं। पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने ट्वीट के जरिए इस बारे में कुछ संकेत भी दिए हैं।

जानकारी के लिए बता दें कि राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद भाजपा का पूरा फोकस उत्तर प्रदेश पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी के सांसद है और उनकी प्रतिष्ठा भी जुड़ी रहती हैं। पीएम मोदी वाराणसी के जरिए पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार पर अच्छा खासा प्रभाव डालते हैं। ऐसे में उन्होंने वाराणसी और गाजीपुर को खूब सौगातें दी हैं।

अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में विभिन्न विकास कार्यों के अलावा अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के दक्षिण एशियाई केंद्र सहित 180 करोड़ रुपये की 15 परियोजनाओं का लाकार्पण कर चुके हैं। इसके अलावा 98 करोड़ रुपये की 14 परियोजनाओं का शिलान्यास भी कर चुके हैं। बता दें कि रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के संसदीय क्षेत्र गाजीपुर में जाकर पीएम मोदी ने महाराजा सुहेलदेव पर डाक टिकट जारी किया तथा जिले में 230 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले मेडिकल कॉलेज की आधारशिला भी रखी। इस प्रकार आप समझ सकते हैं कि पूर्वांचल के विकास पर पीएम मोदी इतना जोर क्यों दे रहे हैं और कांग्रेस पार्टी प्रियंका गांधी को वाराणसी से चुनाव मैदान में उतारने का मन क्यों बना रही है?

संसदीय क्षेत्र वाराणसी से कांग्रेस के पूर्व सांसदों की सूची
अगर वाराणसी संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के विजयी प्रत्याशियों की बात करें, तो 1952, 1957 और 1962 में रघुनाथ सिंह सांसद रहे। इसके बाद 1971 में राजाराम शास्त्री तथा 1980 में कमलापति त्रिपाठी और 1984 में श्यामलाल यादव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से सांसद चुने गए थे। इसके बाद साल 2004 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से डॉ॰ राजेश कुमार मिश्रा वाराणसी के सांसद निर्वाचित किए गए। इसके बाद 1991 से लेकर लोकसभा चुनाव 2014 तक वाराणसी संसदीय क्षेत्र पर अमूमन भारतीय जनता पार्टी का ही क​ब्जा रहा है। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि वाराणसी कांग्रेस की पारंपरिक सीट रही है, लेकिन पूर्वांचल में कांग्रेस का प्रभाव कम होते ही यह महत्वपूर्ण सीट उसके हाथों से छीन गई।

पूर्वी उत्तर प्रदेश यानि कि पूर्वांचल कांग्रेस पार्टी के लिए बंजर जमीन जैसा ही है, फिर भी कांग्रेस पार्टी प्रियंका गांधी को वाराणसी से इसलिए चुनाव लड़वा सकती है, क्योंकि इसका सीधा असर पूर्वांचल पर होगा। यह भी चर्चा तेज है कि पीएम मोदी के खिलाफ विपक्ष वाराणसी में एक ही उम्मीदवार उतारेगा। ऐसे में मायावती और अखिलेश यादव पीएम मोदी के खिलाफ प्रियंका गांधी को अपना समर्थन दे सकते हैं। इससे यह चुनावी युद्ध बहुत रोचक हो जाएगा।

गौरतलब है कि साल 2009 में कांग्रेस ने यूपी से 21 लोकसभा सीटें थीं। इसलिए बारीकी से अध्ययन करने के बाद कांग्रेस लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर अपनी अंतिम रणनीति जरूर बनाएगी। खैर जो भी हो, प्रियंका गांधी अब अपना पूरा वक्त यूपी में ही लगाएंगी। जाहिर है, सपा, बसपा, रालोद और कांग्रेस ने यूपी के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने की मुकम्मल तैयारी कर ली है।

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