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महाभारत महाकाव्य के मुताबिक, कुंती पुत्र अर्जुन एक बार महेन्द्र पर्वत होकर समुद्र के किनारे चलते-चलते हुए मणिपुर पहुंचे। वहां उन्होंने मणिपुर नरेश चित्रवाहन की पुत्री चित्रांगदा को देखा तो उसकी सुंदरता पर मोहित हो गए। इसके बाद अर्जुन ने मणिपुर नरेश चित्रवाहन के समक्ष पहुंचकर कहा कि मैं कुलीन क्षत्रिय हूं। मेरा नाम पांडु पुत्र अर्जुन है, आप मुझसे अपनी कन्या का विवाह कर दीजिए।

इसके बाद मणिपुर नरेश चित्रवाहन ने अर्जुन के समक्ष एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि चित्रांगदा का पुत्र मेरे पास ही रहेगा। चित्रवाहन ने अर्जुन को बताया कि भगवान शिव के वरदान के मुताबिक मेरे वंश की हर पीढ़ी में केवल एक ही संतान होगी, ऐसे में कन्या चित्रांगदा ही मेरी एक मात्र संतान है।

अर्जुन ने कहा, ठीक है आपकी शर्त मुझे मंजूर है। इस प्रकार अर्जुन और चित्रांग्दा का विवाह हुआ। अर्जुन ने कुछ काल तक चित्रांगदा के साथ वैवाहिक जीवन का आनंद लिया, इसके बाद दोनों से एक पुत्र हुआ। अर्जुन और चित्रांगदा से जन्मी इस संतान का नाम बभ्रुवाहन रखा गया। पुत्र बभ्रुवाहन के जन्म के पश्चात उसके पालन का अधिकार चित्रांगदा को देकर अर्जुन ने विदा ले ली।

कालांतर में बभ्रुवाहन अपने नानाश्री की मृत्यु के बाद भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर का राजा बना। महाभारत कथा के अनुसार, जब युधिष्ठिर ने अश्वमेघ यज्ञ करवाया तो यज्ञ के घोड़े को बभ्रुवाहन ने पकड़ लिया था। घोड़े की रक्षा के लिए अर्जुन मौजूद थे। ऐसे में बभ्रुवाहन ने अपने ही पिता अर्जुन से युद्ध किया था।

युद्ध के दौरान बभ्रुवाहन ने अर्जुन को मूर्छित कर दिया। इसके बाद ​अपनी मां चित्रांगदा के कहने पर बभ्रुवाहन ने मृतसंजीवक मणि द्वारा अर्जुन को चैतन्य किया था। तत्पश्चात अपनी मां के कहने पर बभ्रुवाहन ने अश्वमेघ का घोड़ा अर्जुन को लौटा दिया। कथा के मुताबिक मणिपुर नरेश बभ्रुवाहन अपनी मां चित्रांगदा के साथ युधिष्ठिर के अश्वमेघ यज्ञ में शामिल हुए थे।

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