विधानसभा चुनाव हारने वाला बन गया भारत का राष्ट्रपति
भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का जन्म 1945 में कानपुर देहात के परौख गांव में हुआ। एलएलबी करने के बाद बतौर सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता के रूप में कोविंद ने अपना करियर शुरू किया था। 1977 में जब मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने, तब कोविंद उनके निजी सचिव बने। इसी वक्त रामनाथ कोविंद बीजेपी के नजदीक आए।
1980 से लेकर 1993 तक रामनाथ कोविंद सुप्रीम कोर्ट के स्थायी वकील बने रहे। 1991 में बीजेपी ने उन्हें घाटमपुर से लोकसभा की रिजर्व सीट दी, लेकिन कोविंद यह चुनाव हार गए। हांलाकि दलित समुदाय को साधने के लिए बीजेपी ने 1993 में उन्हें राज्यसभा सदस्य बना दिया।
1993 में राम मंदिर लहर के बाद सत्ता में लौटी भाजपा ने 1996 में बसपा से हाथ मिलाया, तब उसी साल रामनाथ कोविंद को एक बार फिर से राज्यसभा सदस्य बना दिया गया। 90 के दशक में कटटर सवर्ण पार्टी की छवि से निजात पाने के लिए बीजेपी बार-बार रामनाथ कोविंद को राज्यसभा में भेजती रही। रामनाथ कोविंद के दलित होने का फायदा और नुकसान भी कोविंद को ही झेलना पड़ा ना कि बीजेपी को। साल 2012 में राजनाथ सिंह ने बसपा और मायावती के खिलाफ माहौल बनाने के लिए यूपी में कोविंद से चुनाव प्रचार करवाया था। बताया जाता है कि रामनाथ कोविंद राजनाथ सिंह के सबसे ज्यादा करीबी हैं।
यह बात साल 2007 की है, जब राज्यसभा सांसद का दूसरा कार्यकाल खत्म करने के बाद रामनाथ कोविंद को सक्रिय राजनीति में बनाए रखने के लिए बीजेपी ने उन्हें भोगनीपुर से विधानसभा चुनाव लड़वाया। इस चुनाव में कोविंद को कुल 26,549 वोट मिले थे, जबकि उनके प्रतिद्वंदी और बसपा उम्मीदवार 61 वर्षीय रघुनाथ प्रसाद को 36,829 वोट मिले। इस प्रकार रामनाथ कोविंद विधानसभा चुनाव तक नहीं जीत पाए।
इस चुनाव में दूसरे पायदान पर सपा उम्मीदवार अरूण कुमारी रही, जिन्हें 33,731 वोट मिले थे। यहां तक कि लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी से उन्होंने उरई-जालौन से टिकट मांगा था, लेकिन बीजेपी ने नकार दिया था। लेकिन किस्मत की लकीर देखिए जिसके नसीब में लोकसभा चुनाव का टिकट तक नहीं था, वह देश का राष्ट्रपति बन गया।