भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हाल ही में शंघाई कोआपरेशन आर्गेनाइजेशन सम्मलेन में भाग लेने के लिए उज्बेकिस्तान के समरकंद गए थे। पूरे विश्व का मीडिया इस सम्मलेन को बहुत ही निकट से देख रहा था। ऐसा होता भी क्यों न। जहां एक तरफ रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरू होने के बाद से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहली बार किसी बहुपक्षीय सम्मलेन में भाग ले रहे थे, वहीं दूसरी ओर कोविड महामारी के शुरू होने के लगभग ढाई साल बाद चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग पहली बार विदेश यात्रा कर रहे थे। इसके साथ-साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी पहली बार एक-दूसरे के सामने खड़े थे। परंतु इन सबके बीच पश्चिमी देशों की मीडिया में यदि किसी घटना की सुर्खियां बनी तो वह था भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का रूसी राष्ट्रपति के समक्ष दो टूक यह कह देना कि, ‘यह युग युद्ध का नहीं है।’

भारत के इतने बड़े सहयोगी देश को युद्ध के संदर्भ में दो टूक कह पाने की हिम्मत मोदी कैसे कर पाए? दरअसल यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की ‘गैर-पारंपरिक सोच’ रखने वाली नई विदेश नीति को दर्शाता है। वैसे तो इस नई विदेश नीति में कई महत्वपूर्ण आयाम हैं, लेकिन इसके तीन स्तंभों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। पुतिन ने भी इस बात को संजीदगी से लेते हुए यह बताने की कोशिश की थी कि रूस भारत की चिंताओं के प्रति गंभीर है और इसको लेकर सार्थक प्रयास कर रहा है। यह गौर करने वाला विषय है कि जो पश्चिमी मीडिया मोदी सरकार की अनेक मुद्दे पर आलोचना करने से नहीं थकता है, वह मोदी की अत्यंत प्रशंसा कर रहा है।


डी-हाइफेनेशन
भारत अपने कौशल से परस्पर विरोधियों के साथ मधुर संबंध बनाकर चल रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमें मोदी की पश्चिम एशिया नीति में दिखाई देता है जहां ईरान, सऊदी अरब और इजराइल के रूप में तीन बड़े ध्रुव उपस्थित हैं। इन देशों में आपस में वैर भाव है, परंतु भारत ने इन तीनों के साथ बहुत ही अच्छे रिश्ते बना लिए हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है दो परस्पर जुड़ी हुई वस्तुओं को अलग करना। भारत आज अपने हितों को केंद्र में रख कर विरोधाभासों का समावेश कर रहा है। दरअसल भारत यह समझ चुका है कि एक पक्ष से अच्छे संबंधो को दूसरे पक्ष यानी उसके विपक्षी से बिगड़े हुए संबंध के रूप में जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए।


नरेन्द्र मोदी ने भू-राजनीति को भली-भांति समझते हुए न केवल इजराइल का खुले दिल से स्वागत किया, बल्कि 2017 में प्रथम भारतीय प्रधानमंत्री के रूप में इजराइल का दौरा कर सभी तरह के संशय को समाप्त कर दिया। इजराइल से हम केवल रक्षा क्षेत्र में ही सहयोग नहीं कर रहे हैं, बल्कि जल-प्रबंधन, कृषि और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में भी वह एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में उभरा है। इतना ही नहीं, अमेरिकी दबाव के बावजूद हमने ईरान से अपने रिश्ते नहीं तोड़े और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह में ईरान के साथ मिल कर काम किया।

Related News