यह बात सभी भारतीय जानते हैं कि महात्मा गांधी की राजनीतिक विरासत पंडित जवाहर लाल नेहरू को मिली। लेकिन बापू की जिंदगी के दूसरे अध्याय अध्यात्म और सत्याग्रह का असली वारिस तो कोई और ही था। यह अलग बात है कि आचार्य नरेंद्र देव, राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण का नाम प्रमुख गांधीवादियों में गिना जाता था। लेकिन देश के ये सभी प्रख्यात राजनीतिज्ञ विचारधारा से समाजवादी थे। जबकि किसी भी वाद से बिल्कुल अलग केवल महात्मा गांधी के बताए रास्ते पर चलने वाले देश के पहले सत्याग्रही का नाम था विनोबा भावे।

दोस्तों, आपको जानकारी के लिए बता दें कि रायगढ़ के गागोडे गांव निवासी एक चितपावन ब्राह्मण नरहरि भावे ने अपने चार बेटों विनायक, बालकृष्ण, दत्तात्रेय और शिवाजी को महात्मा गांधी को दान में दे दिया था। ऐसे में विनोबा भाव बचपन से ही महात्मा गांधी का अनुसरण करना शुरू कर दिया।

21 साल की उम्र में ही विनोबा भाव गांधी जी के कोचराब आश्रम चले गए। उन्होंने स्कूल-कॉलेज से भले ही दूरी बना ली लेकिन अपनी पढ़ाई कभी बंद नहीं की। आजादी की गतिविधियों में हिस्सा लेना, गीता का अध्ययन करते रहना यहां तक कि वर्धा आश्रम की पूरी जिम्मेदारी महात्मा गांधी ने विनोबा भावे को ही दे रखी थी। 1940 में अंहिंसक असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने विनोबा को ही अपना पहला सत्याग्रही बताया।

यह बात उन दिनों की है जब अप्रैल 1951 में विनोबा ने तेलंगाना का दौरा किया। 18 अप्रैल 1951 को वह जब नलगोंडा ज़िले के पोचमपल्ली पहुंचे, तब दलितों के 40 परिवारों ने उनसे कहा कि अगर उन्हें 80 एकड़ जमीन मिल जाए तो उनका भी गुजर-बसर हो जाएगा।

फिर क्या था दलितों और बेसहारों को भूदान कराने के लिए विनोबा भाव ने देशभर में पैदल यात्रा की। उन्होंने बिना सरकार से पूछे गांव के लोगों से हरिजनों के लिए जमीनें मांगनी शुरू कर दी। इस दौरान रामचंद्र रेड्डी नाम के एक किसान ने बिना किसी देरी के दलितों के लिए 100 एकड़ ज़मीन देने की पेशकश कर दी। इस घटना ने विनोबा भावे को बहुत प्रभावित किया और उन्होंने पूरे देश में घूम-घूमकर हरिजनों के लिए जमीनें मांगनी शुरू कर दी।

वह देश की जनता से कहते कि आप लोग मुझे अपना बेटा मानकर मुझे अपनी जमीन का छठा हिस्सा दे दीजिए, जिससे कि भूमिहीन बस सकें तथा खेती-बारी कर अपना पेट पाल सकें। विनोबा की इस अपील का लोगों पर खूब असर हुआ। दक्षिण और उत्तर भारत में कुल मिलाकर जनता ने खूब जमीनें दान की। केंद्र सरकार के मुताबिक, पूरे देश में 22.90 लाख एकड़ ज़मीन का दान हुआ। इनमें से 6.27 लाख एकड़ ज़मीन आज तक ज़रूरतमंदों को बांटी नहीं जा सकी है।

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