भारत के सियासी गलियारे में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ धरने पर बैठने के बाद ममता बनर्जी के राजनीतिक कद में इजाफा हुआ है।

दरअसल लोकसभा चुनाव 2019 के मद्देनजर ममता बनर्जी अपनी रणनीति के तहत धीरे-धीरे कदम बढ़ाती दिख रही हैं, ताकि वह नरेंद्र मोदी को सियासी पटकनी देकर प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर बैठ सकें।

शारदा चिटफ़ंड घोटाला मामले में सीबीआई के खिलाफ धरने पर बैठना ममता बनर्जी का राष्ट्रीय राजनीति में आने केे लिए उठाया गया एक कदम है। इसके लिए ममता बनर्जी ने ठीक वही स्थान चुना, जहां वह साल 2006 में सिंगूर में टाटा मोटर्स की फैक्ट्री के लिए खेती की ज़मीन के अधिग्रहण के ख़िलाफ़ धरना दिया था।

बता दें कि प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष में राहुल गांधी और शरद पवार जैसे कई उम्मीदवार हैं। लेकिन इस पद के लिए अभी तक इनके बीच आम सहमति नहीं बन पाई है। ऐसे में अगर ममता बनर्जी मौजूदा संघर्ष में नरेंद्र मोदी को पछाड़ देती हैं, तो निश्चित तौर पर वह प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी हासिल कर लेंगी।

ममता बनर्जी की इस लड़ाई में विपक्षी दलों का खुला समर्थन हासिल है। बता दें कि ममता बनर्जी ने अपनी यह छवि पिछले कई वर्षों में बनाई है। इतना ही नहीं क्षेत्रीय नेताओं में यह डर भी है कि अगर ममता बनर्जी के साथ कुछ होता है, तब भविष्य में उनके साथ भी कुछ हो सकता है। इसलिए संभावना बन रही है कि अधिकांश क्षेत्रीय नेता राहुल गांधी के मु​काबले ममता बनर्जी के साथ ज्यादा सहज दिख रहे हैं।

यही वजह है कि पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा से लेकर चंद्रबाबू नायडू जैसे नेता लोकतंत्र बचाने की अपील पर ममता बनर्जी के साथ खड़े दिखते हैं। गौरतलब है कि ममता बनर्जी इस राजनीतिक अवसर का फायदा उठाकर खुद को लाइमलाइट में ले आती हैं।

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