14 फरवरी 2019 को आतंकियों पुलवामा हमले को अंजाम दिया। इस कायराना हमले में सीआरपीएफ के 44 जवान मारे गए। इस हमले के बाद पूरे देश में आक्रोश का माहौल है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बयान दिया है कि आतंकवादियों ने बहुत बड़ी गलती कर दी है, उन्हें इसकी सजा जरूर मिलेगी। पीएम मोदी के बयान से साफ है कि सरकार कोई ना कोई सक्रिय कदम जरूर उठाएगी।

पाकिस्तान के विरूद्ध जरूरी दंडात्मक कदम उठाने के विकल्पों पर विचार जारी है। इस बारे में जनता का कहना है कि भारत पाकिस्तान के साथ की गई सिंधु जल संधि को समाप्त कर दे। पर्यवेक्षकों का मानना है कि सिंधु जल संधि को समाप्त करना पाकिस्तान पर परमाणु बम गिराने के समान होगा। इस जलसंधि को तोड़ते ही भारत से पाकिस्तान जाने वाली नदियों के पानी को रोका जा सकता है। मतलब साफ है पाकिस्तान में पानी के लिए हाहाकार मच जाएगा।

इस प्रकार पाकिस्तान को दबाव में आकर अपनी जनता के लिए आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली अपनी ​नीति को बदलना पड़ेगा। पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से एमएफएन का दर्जा वापस ले लिया है।
जानिए भारत और पाकिस्तान के बीच कब हुई थी सिंधु जल संधि?वर्ष 1960 के सितंबर महीने में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के फील्ड मार्शल अयूब खान के बीच यह जल संधि हुई थी। इस जल संधि के मुताबिक, जम्मू कश्मीर में बहने वाले तीन नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी भारत नहीं रोक सकता है।

बता दें कि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला भी पिछले कई सालों से सिंधु जल संधि खत्म करने की मांग उठाते रहे हैं। गौरतलब है कि पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत—पाक सीमा पर युद्ध के बादल मंडराने लगे हैं। पिछले 30 सालों से पाकिस्तान आतंक के खौफनाक रास्ते पर चलकर भारत को नुकसान पहुंचाता रहा है। अब भारत की जनता सिंधु जल संधि तोड़ने की मांग कर रही है।

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