तेल के भंवर में फंसी मोदी सरकार, बिगड़ सकता है सत्ता पक्ष का सियासी खेल
राजनीति से जुड़ी सटीक खबरों के लिए हमें फॉलो करना ना भूलें, यह खबर आपको कैसी लगी कमेंट करके हमें बताएं।
दोस्तों, आपको बता दें कि अमेरिका और ईरान के बीच बिगड़ते रिश्तों का सीधा असर भारत पर भी देखने को मिलेगा। जी हां, कच्चे तेल की महंगाई की मार से भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में महंगाई की मार बढ़ सकती है।
ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध के बाद नवंबर महीने से ही कच्चे तेल का दाम सौ डालर प्रति बैरल पहुंचने की आशंका जताई जा रही है। इससे दुनिया के तमाम देशों में महंगाई बढ़ने की आशंका व्याप्त हो गई है।
बताया जा रहा है कि महंगाई का सबसे ज्यादा असर भारत, चीन और जापान जैसे देशों पर पड़ेगा। सर्दी के दिनों में तेल की खपत काफी बढ़ जाती है, लिहाजा अमेरिका और यूरोप में भी तेल की मांग बढ़ेगी।
मतलब साफ है, अमेरिका में तेल उत्पादन बढ़ने के बावजूद भी वह भारत को ज्यादा कच्चे तेल की आपूर्ति करने में सक्षम नहीं होगा। इसलिए भारत को खाड़ी देशों पर निर्भर रहना होगा।
दुनिया का करीब 40 फीसदी तेल का उत्पादन खाड़ी देशों में ही होता है, लेकिन ईरान पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों का सबसे ज्यादा असर एशियाई देशों जैसे भारत, चीन, जापान, ताइवान एवं यूक्रेन में ही देखने को मिलेगा।
आगामी विधानसभा चुनाव पर असर
दोस्तों, आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव-2019 से पहले देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन राज्यों में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और मिजोरम विधानसभा का नाम शामि है। जाहिर है सत्ता पक्ष के लिए लोकसभा चुनाव के पहले ये विधानसभा चुनाव एक सेमीफाइनल की तरह साबित होंगे।
देश की सभी राजनीतिक पार्टियों की नजर पांच राज्यों में होने वाले इन्हीं विधासभा चुनावों पर है। ऐसे में तेल के दामों में एक बार फिर से बढ़ोतरी हुई तो सत्ता पक्ष का चुनावी खेल बड़ी आसानी से बिगड़ सकता है। इन 5 राज्यों में से तीन राज्यों में भाजपा की सरकार है। इतना ही नहीं केंद्र में भी बीजेपी गर्वनमेंट है। लिहाजा तेल के दामों में दोबारा तेजी होने का मतलब है लोकसभा चुनाव-2019 में भी सत्ता पक्ष पर संकट।
हांलाकि ठीक इसके विपरीत अमेरिका ने ईरान पर लगे प्रतिबंध के बावजूद मित्र देश भारत को राहत देने की बात कही है। ट्रंप प्रशासन के एक शीर्ष अधिकारी के अनुसार, ईरान पर चार नवंबर से अमेरिका के कड़े प्रतिबंध लागू होने के बाद भी भारत में तेल के आयात की जरूरत को अमेरिका अच्छी तरह से समझता है। ऐसे में वैकल्पिक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए वार्ता जारी है, ताकि हमारे दोस्त भारत की अर्थव्यवस्था पर कोई बुरा असर नहीं पड़े।