जानिये, भारतीय वायु सेना की स्पेशल फ़ोर्स 'गरुड़ कमांडो' से जुड़ीं कुछ रोचक बातें
इंटरनेट डेस्क। गरुड कमांडो फोर्स भारतीय वायुसेना की एक ऐसी इकाई है जिसे हवाई क्षेत्र, आतंकवादियों की खोज और उनसे रखा और विद्रोह विरोधी अभियानों के लिए आतंकवाद के खतरों को त्वरित प्रतिक्रिया प्रदान करने के लिए बनाया गया था। इसकी स्थापना के बाद से, कई काउंटर आतंकवादी अभियानों में इसकी भूमिका के लिए सराहना की गई है। भारतीय वायुसेना ने हाल ही में गरुड स्क्वाड्रन की संख्या बढ़ाने का फैसला किया है। आइये जानते है इनसे जुड़ीं कुछ रोचक बातें -
2001 में जम्मू कश्मीर के सेना शिविरों में हुए आतंकवादी हमलों के बाद फरवरी 2004 में इसकी स्थपना की गई थी और वर्तमान में इनकी संख्या लगभग 1100 है। शुरुआत में इसे 'टाइगर फाॅर्स' के नाम से जाना जाता था लेकिन बाद में इसका नाम बदलकर 'गरुड़ फाॅर्स' कर दिया गया था।
यह भारत में सभी स्पेशल फाॅर्स में सबसे नवनिर्मित इकाई है। इस यूनिट का नाम हिन्दू पौराणिक कथाओं के दिव्य पक्षी गरुड़ के नाम पर रखा गया है जो कि भगवान विष्णु का वाहन है।
जहाँ अन्य स्पेशल फाॅर्स में केवल सेवारत कर्मियों की भर्ती की जाती है वहीं इस फाॅर्स में सैनिकों की सीधी भर्ती की जाती है। हालाँकि इस फाॅर्स में भर्ती होने के लिए उम्मीदवारों को केवल एक अवसर मिलता है।
गरुड कमांडो को भारतीय वायु सेना की रैंक के अनुसार एयरमेन के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
इस फाॅर्स में शामिल होने वाले प्रशिक्षुओं को 72 हफ्तों तक कठोर प्रशिक्षण मिलता है जो कि सभी भारतीय विशेष बलों में सबसे लंबा प्रशिक्षण है। इसके बाद प्रशिक्षु एयरबोर्न चरण को पूरा करने के लिए आगरा में पैराशूट ट्रेनिंग स्कूल में जाते हैं।
प्रशिक्षण के अंतिम चरण में, इनको मिजोरम में स्थित सेना के काउंटर विद्रोह और जंगल वारफेयर स्कूल (सीआईजेडब्ल्यूएस) में भेजा जाता है। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद, उन्हें भारतीय सेना के पैरा एसएफ के साथ तैनात किया जाता है।
यह फाॅर्स सबसे घातक और उन्नत हथियारों जैसे ग्लॉक पिस्तौल, नेगेव मशीन गन, टावर असाल्ट राइफल्स और गैलील स्निपर राइफल्स से लैस होती है।
भारतीय वायु सेना की इस फाॅर्स को संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के हिस्से के रूप में कांगो में भी तैनात किया जा चुका है।