संजय गांधी के पुत्र और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पौत्र वरुण गांधी की उम्र उस वक्त तीन साल की थी। संशय गांधी की मौत के बाद मेनका गांधी और इंदिरा गांधी के संबंध बिगड़ चुके थे। ऐसे में मेनका गांधी अपनी सास से अलग रहने लगी थीं, लेकिन इंदिरा गांधी पोते वरुण को अभी भी नहीं भूला पाई थीं।

बताया जाता है कि इंदिरा गांधी और मेनका गांधी के संबंध इतने बिगड़ चुके थे, उन्होंने आधी रात को ही मेनका को घर से बाहर निकाल दिया था। इसके बाद से मेनका अपने बेटे वरुण गांधी को लेकर अकेले रहने लगी थीं। इसी बीच एक दिलचस्प किस्सा सामने देखने को मिला। दरअसल वरुण गांधी उस वक्त तीन साल के थे, तब इंदिरा गांधी अक्सर मेनका गांधी के घर पहुंचती थी और वरुण का हाथ पकड़कर अपने साथ ले जाती थीं।

इस प्रकार दादी-पोते के बीच मिलने का सिलसिला बढ़ता ही गया। लेकिन मेनका ने वरुण से इंदिरा गांधी के मिलने का समय महज 2 घंटे निर्धारित कर रखा था। इससे अधिक समय तक वह वरुण को अपने साथ नहीं रख सकती थीं। एक बार वरुण अपनी दादी इंदिरा के पास काफी देर तक रूक गए थे। इसलिए मेनका ने वरुण के लिए अपनी गाड़ी भेज दी, लेकिन इंदिरा गांधी ने वरुण को भेजने से मना कर दिया।

दोपहर का समय था, मेनका गांधी तमतमाते हुए थाने पहुंची और उन्होंने पुलिस को वरुण गांधी के अपहरण की सूचना दी। वरुण गांधी के अपहरण की सूचना सुनकर पुलिस में हड़कंप मच गया। वरुण गांधी उस वक्त देश के एक ताकतवर प्रधानमंत्री के पोते थे, ऐसे में पुलिस के लिए यह बहुत बड़ी बात थी। कंट्रोल रूम से वायरलैस चारो तरफ घनघनाने लगे। लेकिन पुलिस उस वक्त सन्न रह गई जब मेनका गांधी ने अपहरणकर्ता के रूप में अपनी सास इंदिरा गांधी का नाम लिखवाया। मेनका गांधी ने कहा कि उनकी सास ने उनके बेटे का अपहरण कर लिया है और प्रधानमंत्री आवास में बंधक बनाकर रखा है।

शुरू में इंदिरा ने अपने पोते वरुण को देने से इंकार कर दिया, लेकिन कुछ लोगों ने समझाया कि मेनका आपको अदालत तक घसीट सकती हैं, आप एक बेटे को उसकी मां से अलग नहीं कर सकती हैं। तब जाकर इंदिरा गांधी ने अपने कदम पीछे की ओर खींचे।

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