इंटरनेट डेस्क। 90 के दशक से पहले लोकसभा में सत्ता पक्ष के विरोध में अविश्वास प्रस्ताव लाना एक प्रतीकात्मक विरोध का साधन मात्र माना जाता था, जिसमें सरकार को जवाबदेही तय करनी होती थी। लेकिन इसके बाद जब गठबंधन सरकारों को दौर आया तो अविश्वास प्रस्ताव को विपक्ष ने अपना हथियार बना लिया। अभी हाल में ही मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष ने सदन में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया, जिसमें सत्ता पक्ष को पूर्ण बहुमत के साथ विजयश्री हासिल हुई है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं देश के ऐसे तीन प्रधानमंत्रियों के बारे में जिन्होंने अविश्वास प्रस्ताव से पहले ही उच्च सदन में इस्तीफा दे दिया था।

मोरार जी देसाई

साल 1978 में मोरार जी देसाई सरकार के खिलाफ विपक्ष ने दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए थे। जिसमें पहली बार तो उन्हें बहुमत हासिल करने में सफलता मिली थी। लेकिन दूसरी बार घटक दलों के आपसी मतभेद के चलते उन्हें अपनी हार का अंदाजा पहले ही लग गया था, ऐसे में उन्होंने 15 जुलाई, 1979 को अविश्वास प्रस्ताव के दौरान मत विभाजन से पहले ही अपना इस्तीफा दे दिया था।

चौधरी चरण सिंह

साल 1979 में चौधरी चरण सिंह सीपीआई और कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे। लेकिन केवल 30 दिन के अंदर ही इंदिरा गांधी ने चौधरी चरण सिंह की सरकार से अपना समर्थन खींच लिया। तत्कालीन प्रेसिडेंट नीलम संजीव रेड्डी ने चरण सिंह को 20 अगस्त को अपना बहुमत साबित करने का निर्देश जारी किया था। लेकिन इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त को बयान दिया कि वह चौधरी चरण सिंह को सदन में बहुमत साबित नहीं करने देंगी। लिहाजा चरण सिंह ने बिना मत विभाजन के ही प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।

अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी को भी उनके कार्यकाल में दो बार विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। साल 1996 में बनी एनडीए सरकार के अगुवा अटल बिहारी वाजपेयी ने बिना मत विभाजन के ही इस्तीफा सौंप दिया। जबकि 1999 में वाजपेयी की सरकार एक वोट से गिर गई थी। वहीं साल 2003 में भी विपक्ष ने अटल बिहारी के खिलाफ एक बार फिर से अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन बहुमत के चलते वह अपनी सरकार बचाने में सफल रहे थे।

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