इंटरनेट डेस्क। यूपी जैसे बड़े सूबे का विधान भवन अपने सियासी सफर में कुछ रोचक किस्से भी देख चुका है। बात 21 फरवरी 1998 की है, जब प्रशासनिक अफसर से लेकर नेता तथा जनता भी परेशान हो गई थी कि किस दावेदार को अपना मुख्यमंत्री माना जाए। जी हां, यूपी के गर्वनर रोमेश भंडारी ने 21 फरवरी 1998 को बीजेपी के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बर्खास्त कर दिया। राज्यपाल ने यह तर्क दिया था कि भाजपा की राज्य सरकार को मिला दलबदलू विधायकों का समर्थन किसी भी तरीके से वैध नहीं है।

बताया जाता है कि कल्याण सिंह के ओहदे को खत्म करने के लिए गवर्नर रोमेश भंडारी अपने नजदीकी जगदंबिका पाल को रात में दस बजे ही मुख्यमंत्री पद का शपथ दिलवा दिया। जगदंबिका पाल का अचानक मुख्यमंत्री बनाया जाना एक इत्तेफाक ही था।

22 फरवरी 1998 की सुबह जगदंबिका पाल बतौर मुख्यमंत्री लाल-बत्ती में सीधे सचिवालय और सीएम कार्यालय पहुंचे और विधानसभा में भी शिरकत की। दूसरी तरफ कल्याण सिंह का कहना था कि यदि 222 विधायक उनके साथ हैं, ऐसे में जगदंबिका पाल सीएम बनना संभव नहीं है।

विधानसभा में उस दिन रोचक मामला देखने को मिला। विधानसभा अध्यक्ष केशरीनाथ त्रिपाठी के दोनों तरफ बतौर मुख्यमंत्री जगदंबिका पाल और कल्याण सिंह अपनी-अपनी दावेदारी जता रहे थे। जहां एक तरफ कल्याण सिंह खुद को सीएम बता रहे थे, वहीं जगदंबिका पाल भी गर्वनर रोमेश भंडारी के आदेश की कॉपी विधानसभा अध्यक्ष को दिखा रहे थे।

यह किस्सागोई चल ही रही थी कि अचानक आए एक फैक्स ने जगदंबिका पाल के अरमानों को समुद्र में डूबो दिया। जी हां, यह हाईकोर्ट इलाहाबाद का एक आर्डर था जिसमें यह साफ लिखा था कि गवर्नर का आदेश पूरी तरह से असंवैधानिक है, जबकि शक्ति प्रदशर्न ही वैध है। ऐसे में कल्याण सिंह का मुख्यमंत्री बने रहना ही लाजिमी है।

अब जैसे ही जगदंबिका पाल ने हाईकोर्ट आॅर्डर देखा, वह कल्याण सिंह के लिए अपनी कुर्सी छोड़कर विधानसभा से बाहर निकल गए। कहने का मतलब यह है कि देश के इस सबसे बड़े सूबे को भी सियासत को शर्मसार करने वाली घटना को देखना पड़ा।

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