भारतीय संसद को अपने मौलिक राजनीतिक विचारों से झकझोर देने वाले करिष्माई नेता का नाम था राम मनोहर लोहिया। चाहे वो पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रतिदिन 25 हजार रुपए के खर्चे का हिसाब हो अथवा इंदिरा गांधी को गूंगी गुड़िया कहने का साहस या फिर यह कहने की हिम्मत कि हमारे देश की महिलाओं को सती सीता नहीं बल्कि द्रौपदी बनना चाहिए। ऐसे चुनौतीपूर्ण बयान सिर्फ राम मनोहर लोहिया ही दे सकते थे।

उन्होंने कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेकने के लिए कहा था कि जिंदा कौमें कभी पांच साल तक इंतजार नहीं करतीं। उत्तर भारत में यह नारा बहुत मशहूर हुआ था- जब जब लोहिया बोलता है, दिल्ली का तख्ता डोलता है। लोहिया जी ने कभी पंडित जवाहर लाल नेहरू के बारे में कहा था कि बीमार देश के बीमार प्रधानमंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए। जब साल 1967 में हर तरफ कांग्रेस का जलवा था, तब राम मनोहर लोहिया ही एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने कहा था कि अब कांग्रेस के दिन जाने वाले हैं और नए लोगों का जमाना आ रहा है। लिहाजा 9 राज्यों में कांग्रेस चुनाव हार गई थी।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि राम मनोहर लोहिया की मौत के बाद उनके नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं की कमी नहीं रही। खासकर यूपी और बिहार में लोहिया जी के अनुयायियों की कमी नहीं है। इसी क्रम में एक नाम है मुलायम सिंह यादव। बता दें कि मुलायम सिंह यादव सपा को शुरू से ही लोहिया की विरासत को मानने और आगे बढ़ाने वाली पार्टी के रूप में देखते रहे हैं। इस बारे में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना है कि लोहिया जी हमारी पार्टी के सबसे बड़े आदर्श हैं। उन्होंने कहा कि लोहिया जी ने ही पहली बार 1967 में जसवंत नगर विधानसभा सीट से नेताजी मुलायम सिंह को टिकट दिया था। अखिलेश यादव कहते हैं कि लोहिया जी ने ही सबसे पहले मुलायम सिंह की राजनीतिक क्षमता को देखा था। लोहिया जी का सपना था- सौ में पावें पिछड़े साठ।

मुलायम सिंह ने अपनी राजनीतिक जीवन पर जल्द ही प्रकाशित होने वाली पुस्तक द सोशलिस्ट में कहा है कि साल 1963 में वह अपने साथियों के साथ फर्रूखाबाद सीट से लोकसभा उपचुनाव में लोहिया जी का प्रचार कर रहे थे। तब विधुना विधानसभा में राम मनोहर लोहिया ने मुलायम सिंह से पूछा था कि प्रचार के दौरान क्या खाते हो, कहां रहते हो। मुलायम सिंह ने उत्तर दिया था- साथ में लैइया चना रखते हैं, लोग भी खिला देते हैं और जहां रात होती है उसी गांव में सो जाते हैं। बकौल मुलायम सिंह के शब्दों में-इसके बाद राम मनोहर लोहिया जी ने मेरे कुर्ते की जेब में 100 रूपए का नोट रख दिया था।

यद्यपि मुलायम सिंह को बाद में राम मनोहर लोहिया से बहुत ज्यादा मिलने-जुलने का मौका नहीं मिला। बावजूद इसके लोहिया के राजनीतिक विरासत पर मुलायम सिंह लगातार अपना दावा जताते रहे हैं।

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