सबसे अलग है अशोक चक्र का इतिहास, जानकर गर्व से हो जायेगा सीना चौड़ा
इंटरनेट डेस्क। अशोक चक्र को भारत में 'धर्म चक्र' माना गया है। इस धर्म चक्र को 'विधि का चक्र' कहते हैं, जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि- जीवन गतिशील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है।
अशोक चक्र (वैकल्पिक वर्तनी: अशोक चक्र) भारत का स्बसे बड़ा चक्र है। जो युद्ध के मैदान से दूर बहादुरी, साहसी कार्रवाई या आत्म-बलिदान के लिए सम्मानित है। यह परम वीर चक्र के समतुल्य शांति का समय है और दुश्मन के चेहरे के अलावा "सबसे विशिष्ट बहादुरी या कुछ साहसी या पूर्व-प्रतिष्ठित बहादुरी या आत्म-बलिदान" के लिए सम्मानित किया जाता है।
इतिहास- सम्राट अशोक के बहुत से शिलालेखों पर प्रायः एक चक्र (पहिया) बना हुआ है। इसे अशोक चक्र कहते हैं। यह चक्र धर्मचक्र का प्रतीक है। उदाहरण के लिये सारनाथ स्थित सिंह-चतुर्मुख (लॉयन कपिटल) एवं अशोक स्तम्भ पर अशोक चक्र विद्यमान है। भारत के राष्ट्रीय ध्वज में अशोक चक्र को स्थान दिया गया है।
अशोक चक्र में 24 तीलियाँ (स्पोक्स्) हैं वे मनुष्य के अविद्या से दु:ख बारह तीलियां और दु:ख से निर्वाण बारह तीलियां (बुद्धत्व अर्थात अरहंत) की अवस्थाओं का प्रतिक है। भारत के राष्ट्रीय ध्वज में भी अशोक चक्र को दर्शाया गया है।