हिंदुत्व के नाम पर दुनिया को दी थी खुली चुनौती, पढ़ें विवेकानंद का वह ओजस्वी भाषण
यह बात हर भारतीय क्या पूरा विश्व जानता है कि साल 1893 में स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो धर्म संसद में एक ओजस्वी भाषण दिया था। इसके बाद पूरी दुनिया में हिंदुत्व का डंका बज गया था। आज हम आपको विवेकानंद के उसी ओजस्वी भाषण की कुछ चुनिंदा पंक्तियां पेश करने जा रहा हूूं।
आज से ठीक 125 वर्ष पहले विवेकानंद ने अपने भाषण की शुरूआत में ही कहा था- मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों। इसके बाद पूरा सभागार कई मिनट तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा था। तो देर किस बात की आइए पढ़ें, स्वामी विवेकानंद के उस भाषण की कुछ खास बातें।
अमेरिका के बहनों और भाइयों, आपके अगाध स्नेह और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको विश्व के सबसे प्राचीन संत परंपरा की ओर से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं।
लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आभार प्रकट करता हूं। मैं मंच से उन वक्ताओं को भी धन्यवाद देता हूं, जिनकी वजह से दुनियाभर में सहनशीलता का विचार सुदूर पूर्व के देशों में फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने पूरी दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम ना केवल सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास रखते हैं, बल्कि सभी धर्मों की सत्यता को पूर्ण रूप से स्वीकार करते हैं।
स्वामी विवेकानंद की कुछ यादगार पंक्तियां
मुझे उम्मीद है कि यह विश्व धर्म संसद सभी तरह के क्लेश, हठधर्मिताओं तथा सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।
मुझे गर्व हैं कि मैं उस देश हूं जिसने जिसने पारसी धर्म के लोगों को ना केवल शरण दी बल्कि आज भी उनकी मदद कर रहा है। मेरे दिल में इजराइल की वह पवित्र यादें हैं, जिनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और उन्होंने दक्षिण भारत में शरण लिया था।
मैं आपको कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है- 'रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम... नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव...' इसका अर्थ है - जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिल जाती हैं, उसी तरह इंसान अपनी इच्छानुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है, जो देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, परंतु अंत में सभी भगवान तक ही जाते हैं।
वंशज हठधर्मिता, कट्टरताएं, सांप्रदायिकताएं काफी लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। ना जाने कितनी ही बार यह पृथ्वी खून से लाल हुई है। न जाने कितने देश नष्ट हुए, कई सभ्यताओं का विनाश हुआ। लेकिन अगर ये राक्षस नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता। लेकिन संभव है अब उनका समय पूरा हो चुका है।