इंटरनेट डेस्क। मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई जून में बढक़र 5.77 फीसदी पर पहुंच गई है, जो इसका पिछले साढ़े चार साल का उच्चतम स्तर है। मुख्य रूप से सब्जियों और ईंधन के महंगा होने से मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ा है। मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ने से भारतीय रिजर्व बैंक अपनी नीतिगत दरों को बढ़ा सकता है।

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक इसी माह के अंत में होने जा रही है। यहां यह उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2013 के बाद महंगाई का यह सबसे अधिक स्तर है। उस वक्त महंगाई 5.9 फीसदी दर्ज हुई थी। इस साल मई में थोक महंगाई 4.43 फीसदी और पिछले साल जून में 0.90 फीसदी थी। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की ओर से इस सप्ताह के शुरू में जारी आंकड़ों में यह जानकारी सामने आई है। इस साल मार्च में 2.74 प्रतिशत रहने वाली थोक महंगाई तीन महीने में तीन प्रतिशत से ज्यादा बढ़ चुकी है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले हफ्ते खुदरा महंगाई के आंकड़े जारी हुए थे। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा महंगाई जून में 5 फीसदी रही, जो बीते पांच महीने का उच्चतम स्तर है। रिजर्व बैंक देश की मौद्रिक नीति को तय करने में मुख्य रूप से खुदरा मुद्रास्फीति के आंकड़ों का इस्तेमाल करता है। रिजर्व बैंक महंगाई दर चार फीसदी पर रखे जाने का लक्ष्य लेकर चलता है।

मुद्रास्फीति जब भी इस दायरे से बाहर चली जाती है तो केंद्रीय बैंक पर नीतिगत दरों को बढ़ाने का दबाव बढ़ जाता है। थोक मुद्रास्फीति के बढ़ने का असर खुदरा महंगाई पर भी पड़ेगा, जिससे बाजार में नकदी का प्रवाह प्रभावित होगा। ऐसी स्थिति में इस माह के आखिर में होने वाली रिजर्व बैंक की मौद्रिक समीक्षा बैठक में रेपोरेट बढ़ाने पर विचार हो सकता है। पिछली बैठक में आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) ने रेपो रेट में 0.25 फीसदी बढ़ा दी थी। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों में बताया गया है कि थोक महंगाई पर सब्जियों, खाने-पीने की चीजों और कच्चे तेल की कीमतों का बड़ा असर पड़ा है। पिछले साल जून की तुलना में इस साल जून में ईंधन वर्ग के उत्पाद 16.18 फीसदी महंगे हुए। रेटिंग एजेंसी इक्रा के अर्थशास्त्री के अनुसार कच्चे तेल की बढ़ी कीमतों के अलावा कपास और बिजली की ऊंची दर का भी प्र्रभाव पड़ा है। थोक महंगाई में 22.62 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाली प्राथमिक वस्तुओं की कीमतों में जून में 5.30 फीसदी की तेजी रही, मई में यह 3.16 फीसदी पर थी। इसमें सब्जियों की महंगाई तीन गुना बढ़ी, यानी जून में यह 8.12 फीसदी हो गई, जो मई में 2.51 फीसदी थी।

बिजली और ईंधन क्षेत्र की मुद्रास्फीति दर जून में बढक़र 16.18 फीसदी हो गई जो मई में 11.12 फीसदी थी। इसकी प्रमुख वजह वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ना है। रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के सामने बढ़ती कीमतें चिंता का विषय बनी हुई है। सरकार और रिजर्व बैंक ने खुदरा महंगाई के लिए 4 फीसदी का लक्ष्य तय कर रखा है। इसमें दो फीसदी घट-बढ़ की गुंजाइश है। लेकिन जून में लगातार आठवें महीने खुदरा महंगाई 4 फीसदी से ऊपर दर्ज हुई है। इसमें भी खाने पीने की चीजें मुख्य वजह रह है। विश्लेषकों का मानना है कि एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) बढ़ाने से रिजर्व बैंक ब्याज दर फिर बढ़ा सकता है। बढ़ती महंगाई दर रिजर्व बैंक के अनुमान के मुताबिक ही है। बैंक ने अपने ताजा अनुमान में अक्टूबर-मार्च छमाही में खुदरा महंगाई दर 4.7 फीसदी रहने का अनुमान जताया था। इससे पहले उसका पूर्वानुमान 4.4 फीसदी था। केंद्रीय बैंक ने चार साल बाद नीतिगत दर में वृद्धि की है। मौद्रिक नीति समिति की अगली तीन दिवसीय बैठक 30 जुलाई से एक अगस्त के बीच होगी। पिछली बैठक में रिजर्व बैंक ने नीतिगत ब्याज दरों में 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी की थी।

Related News